tag:blogger.com,1999:blog-2137573861673086114.post2609746379465184120..comments2024-02-26T23:20:04.386+05:30Comments on लघुकथा-वार्ता Laghukatha-Varta: समकालीन लघुकथा और बुजुर्गों की दुनिया/बलराम अग्रवालबलराम अग्रवालhttp://www.blogger.com/profile/00988526655873868638noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-2137573861673086114.post-20262713714674067752010-06-27T20:54:40.417+05:302010-06-27T20:54:40.417+05:30अच्छा आलेख है ।अच्छा आलेख है ।प्रदीप कांतhttps://www.blogger.com/profile/09173096601282107637noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2137573861673086114.post-85926528275439265862010-06-23T22:29:03.594+05:302010-06-23T22:29:03.594+05:30AAPKAA LEKH SANGRAHNIY HAI.AAP JAESE SAHITYAKAR DH...AAPKAA LEKH SANGRAHNIY HAI.AAP JAESE SAHITYAKAR DHOONDH- DHOONDH<br />KAR LAGHU KATHAA PAR BAHUT KUCHH<br />LIKH RAHE HAIN,YAH BADEE UPLABDHI<br />KEE BAAT AI.PRAN SHARMAhttp://mahavir.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2137573861673086114.post-42834428543666395892010-06-23T11:47:36.530+05:302010-06-23T11:47:36.530+05:30संतोष सुपेकर की लघुकथा‘लक्ष्मण रेखा में आया यह कथन...संतोष सुपेकर की लघुकथा‘लक्ष्मण रेखा में आया यह कथन-—“घर के बुजुर्ग का जूता भी बाहर पड़ा हो तो मुसीबत आने से हिचकती है।” किसी वेद वाक्य से कम नहीं । लेख का विषय तो गम्भीर है ही , बलराम अग्रवाल जी ने अपनी मँजी हुई शैली में इसे प्रस्तुतकरके नायाब बना दिया है ।सहज साहित्यhttps://www.blogger.com/profile/09750848593343499254noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2137573861673086114.post-36790484428493807812010-06-23T09:07:35.362+05:302010-06-23T09:07:35.362+05:30कुल दोनों भाग मिलकर लेख बहुत महत्वपूर्ण बन गया है।...कुल दोनों भाग मिलकर लेख बहुत महत्वपूर्ण बन गया है। ऐसे चिंतनपूर्ण लेख कई-कई जगह प्रकाशित हों, तभी अधिकाधिक लोगों तक पहुंचकर अपने उद्देश्य में सफल हो सकते हैं।उमेश महादोषीhttps://www.blogger.com/profile/17022330427080722584noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2137573861673086114.post-79800475995950419562010-06-23T06:33:10.842+05:302010-06-23T06:33:10.842+05:30भाई बलराम,
लघुकथाओं पर तुम बहुत महत्वपूर्ण कार्य ...भाई बलराम,<br /><br />लघुकथाओं पर तुम बहुत महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हो. पिछला आलेख भी पढ़ा था और यह भी. इस शोधपूर्ण आलेख के लिए बधाई.<br /><br />लघुकथा विधा के प्रति तुम्हारी चिन्ता और गैर व्यावसायिक स्तर पर उसके प्रति तुम्हारा समर्पण प्रेरणादायी है----खासकर ऎसे समय में जब लोग लघुकथाओं को उलटफेर कर अनेकानेक संकलन सम्पादित करते हुए पैसा कमा रहे हैं. यही नहीं, वे अपने निजी हितों के कारण गैर लघुकथाकारों को लघुकथा विधा में बलात थोपने का प्रयास भी कर रहे हैं तब तुम्हारा कार्य सोचने के लिए विवश करता है.<br /><br />चन्देलरूपसिंह चन्देलhttps://www.blogger.com/profile/01812169387124195725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2137573861673086114.post-30347721775419082872010-06-22T23:15:11.194+05:302010-06-22T23:15:11.194+05:30भाई बलराम, तुम्हारा आलेख "समकालीन लघुकथा और ब...भाई बलराम, तुम्हारा आलेख "समकालीन लघुकथा और बुजुर्गों की दुनिया" अच्छा है और गौर करने लायक है, वह इसलिए कि कथा साहित्य विशेशकर कहानी में वृद्धों पर बहुत कुछ लिखा गया और लिखा जा रहा है और उस पर उसी अनुपात में बात भी होती रही है। कुछ वर्ष पूर्व 'वागार्थ' का 'वृद्ध विशेषांक' छपा था और बेहद सराहा गया था। लेकिन ऐसा नहीं है कि कथा विधा की ही सहचर विधा "लघुकथा" में "वृद्ध जीवन" पर नहीं लिखा गया। लिखा गया और बहुत लिखा गया, बेहतरीन भी, पर उसे रेखांकित करने का काम न के बराबर हुआ। जिस उपेक्षा, तिरस्कार और असहायपन को लोग वृद्धावस्था में बेजुबान होकर जीते हैं, उसकी गहरी संवेदना से भरा पूरा साहित्य विश्व के तमाम भाषाओं के साहित्य में हमें मिलता है। हिंदी लघुकथा में भी इसके भरपूर दर्शन होते हैं। इस पर गम्भीर रूप से कोई काम नहीं हुआ। तुमने प्रयास किया तो अच्छा लगा लेकिन तुम्हार आलेख अभी विस्तार मांगता है। फिर भी तुम बधाई के पात्र हो कि तुमने इस तरफ ध्यान दिया।सुभाष नीरवhttps://www.blogger.com/profile/06327767362864234960noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2137573861673086114.post-43435866856977084432010-06-19T17:19:35.847+05:302010-06-19T17:19:35.847+05:30...बेहतरीन!!!!...बेहतरीन!!!!कडुवासचhttps://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com