गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

बलराम अग्रवाल से सुरेश जाँगिड़ ‘उदय’ की बातचीत


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सूक्ष्म एवं समग्र कथात्मक प्रस्तुति का नाम लघुकथा है

सुरेश जाँगिउदयआपकी दृष्टि में लघुकथा क्या है? लघुकथा के आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं?
बलराम अग्रवालमनुष्य के समसामयिक संवेदन-तंतुओं को प्रभावित करने वाली वस्तु विशेष की सूक्ष्म एवं समग्र कथात्मक प्रस्तुति का नाम लघुकथा है। पाठक को मानवीय सरोकारों से जोड़ने, छल-छद्म और कपटपूर्ण आचारों के प्रति आगाह करते रहने का दायित्व निभाने में यह पूर्णता के साथ सक्षम है। जहाँ तक आवश्यक तत्वों का मामला है, लघुकथा में मैं शास्त्रीय नियमों का जड़-पक्षधर नहीं हूँ। जिन्हें तत्व कहा जाता है, मैं उन्हें मात्र अवयव मानता हूँ। तत्व तो वह है जिसे कथाकार कथानक के माध्यम से पाठक तक पहुँचाने का प्रयास कर रहा होता है। किसी वस्तु विशेष की कथात्मक-प्रस्तुति के लिए कथाकार जिन अवयवों को उस समय-विशेष में आवश्यक समझता है, उस लघुकथा के वे ही आवश्यक अवयव होंगे। इस प्रकार अपनी-अपनी शैली, शिल्प और कौशल के अनुरूप एक ही कथाकार अलग-अलग रचना में अलग-अलग कथा-अवयवों का प्रयोग करता है।
सुरेश जाँगिड़ उदयआज भी लघुकथा की सर्वमान्य परिभाषा क्यों नहीं उभरकर आ रही है?
बलराम अग्रवालपहली बात तो यह है कि एक ईमानदार रचनाकार को कभी भी परिभाषाओं के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। दूसरी बात यह कि जिस तरह एक रचना ही मानक नहीं हो सकती, उसी तरह सिर्फ एक ही परिभाषा भी अन्तिम नहीं हो सकती। मेरा मानना है कि लघुकथा अभी भी एक विकासमान कथा-विधा है; और विकास का नियम यह है कि मील के पत्थर को लगातार पीछे छोड़ते जाना पड़ता है। क्या आप चाहेंगे कि उत्तरोत्तर विकास को प्राप्त लघुकथा का प्रवाह रुक जाए; वह भी मात्र एक अन्तिम और सर्वमान्य परिभाषा को पा लेने की खातिर?
सुरेश जाँगिड़ उदयक्या लघुकथा को शब्दों की सीमा में बाँधना उचित है? यदि हाँ, तो अधिकतम कितने शब्द एक लघुकथा में होने चाहिएँ?
बलराम अग्रवाललघुकथा रचना और तत्संबंधी आलोचना से जुड़े लोगों के बीच विमर्श से यह निश्चित हो चुका है कि शब्दों की सीमा नहीं, उनकी अर्थवत्ता ही महत्वपूर्ण है। आकार में बड़ी अब तक जितनी भी देशी-विदेशी लघुकथाएँ मैंने पढ़ी हैं, वे डिमाई आकार की पुस्तक के दो पृष्ठों तक की भी हैं तथापि महत्वपूर्ण यही अधिक है कि आकार में छोटी रहकर भी कथा-रचना लघुकथा का फार्म कायम रख पाई है अथवा नहीं।
सुरेश जाँगिड़ उदयलघुकथा और लघु-कहानी में मूलत: क्या अन्तर है?
बलराम अग्रवालअंग्रेजी की शॉर्ट स्टोरी ही हिन्दी में कहानी कहलाती है। उसी को कुछ विद्वानों ने शब्दानुवाद के द्वारा लघु कहानी नाम दिया है। कुछ इस भ्रम में भी हैं कि लघुकथा शब्द शॉर्ट स्टोरी का शब्दानुवाद है; जबकि तथ्य यह है कि लघुकथा अनेक अर्थों में शॉर्ट स्टोरी यानी लघु-कहानी से भिन्न कथा-रचना है।
सुरेश जाँगिड़ उदयआज की लघुकथा और पुरानी जातक कथा, नीति कथा तथा प्रेरक प्रसंग में क्या अन्तर है?
बलराम अग्रवालकिसी विशेष भाव, नीति, शिक्षा या बोध को सम्प्रेषित करने के उद्देश्य से गढ़े गए कथानक वाली रचना को कथा-अवयवों से युक्त और लघु-आकारीय होने के बावजूद लघुकथा नहीं माना जा सकता। यह सिर्फ इसलिए कि समकालीन लघुकथा मनुष्य के इहलौकिक-जीवन से जुड़ी समसामयिक सुखद अथवा भयावह, उत्थानशील अथवा पतनशील स्थितियों-परिस्थितियों, घटनाओं-दुर्घटनाओं के कथापरक चित्रण की विधा है। इसमें नैतिक आदर्श का, नीति का, बोधपरकता का समावेश ही न हो ऐसा नहीं है; लेकिन इन सब की स्थापना-मात्र इसकी रचना का उद्देश्य नहीं होता…ये गौण रहती हैं। उदाहरण के लिए रामेश्वर काम्बोज हिमांशु की लघुकथा ऊँचाई, रघुवीर सहाय की लघुकथा ‘’ तथा रामनिवास मानव की लघुकथा झिलमिलाहट आदि कुछ लघुकथाओं के नाम गिनाए जा सकते हैं।
सुरेश जाँगिड़ उदय’—आपकी दृष्टि में हिन्दी की प्रथम लघुकथा कौन-सी है?
बलराम अग्रवालकिसी भी छोटे आकार की कथा-रचना को किसी पूर्व पत्र-पत्रिका या पुस्तक में छपे पाए जाने भर को मैं पहली लघुकथा हो जाने का आधार नहीं मानता। इसके और-भी अनेक आधार होने चाहिएँ…हैं। मेरी दृष्टि में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की पुस्तक परिहासिनी(1876) में प्रकाशित उनकी रचना अंगहीन धनी हिन्दी की पहली लघुकथा है। यह रचना पहली लघुकथा होने के प्रत्येक निकष पर खरी उतरती है।
सुरेश जाँगिड़ उदयलघुकथा में वैचारिकता का क्या स्थान है?
बलराम अग्रवालइस बारे में अन्तिम रूप से यह जान लेना जरूरी है कि लघुकथा निबंध नहीं है, कथा-रचना है। दूसरे, विचार एक स्फुलिंग का नाम है, बोरा-भर पोथियों का नहीं।
सुरेश जाँगिड़ उदयआज की लघुकथा का केन्द्रीय-स्वर क्या है?
बलराम अग्रवालसमसामयिक जीवन-स्थितियों से उपजे सवाल और उन सवालों से कथाकार के टकराव से उत्पन्न तिक्त और तीक्ष्ण ध्वनि ही आज की लघुकथा का केन्द्रीय-स्वर है।…और अगर नहीं है, तो होना चाहिए।
सुरेश जाँगिड़ उदयक्या आप लघुकथा के वर्तमान स्वरूप से सन्तुष्ट है?
बलराम अग्रवालबेशक।
सुरेश जाँगिड़ उदयआपको आजकल प्रकाशित हो रही लघुकथाओं में क्या और कौन-कौन सी कमियाँ दिखाई देती हैं?
बलराम अग्रवालसिर्फ एक। वो ये कि छोटे आकार में कुछ-भी, कैसा-भी लिख और छाप डालने की प्रवृत्ति जोर पकड़ती जा रही है। स्थितियों या घटनाओं को लिख देना भर ही तो लघुकथा नहीं है।
संदर्भ: लघुकथा-संकलन छोटी-सी हलचल(संपादक: सुरेश जाँगिड़ उदय, 1997)
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3 टिप्‍पणियां:

सहज साहित्य ने कहा…

आप यह महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं । जुटे रहिए ।हिमांशु

Hari Joshi ने कहा…

लघुकथा पर आपके प्रयास प्रेरक हैं।

बलराम अग्रवाल ने कहा…

भाई काम्बोजजी व हरि जोशीजी, हौसला बढ़ाने के लिए आप दोनों का शुक्रिया