[दोस्तो, 'चन्ना चरनदास' की ही एक समीक्षा सुप्रसिद्ध आलोचक श्रद्धेय डॉ॰ विश्वनाथ त्रिपाठी ने भी कृपापूर्वक लिखी थी। उनकी समीक्षा-दृष्टि के आगे 'चन्ना चरनदास' और अपने-आप को मैंने 'भासा भनिति भोरि मति मोरी' पाया, सो संकोचवश इसे प्रकाशनार्थ कहीं भेज नहीं सका। सन् 2006 में प्राप्त यह समीक्षा भी गड़े-दबे कागजों में से निकली है। प्राप्त होने के अब लगभग पाँच वर्ष बाद इसे आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ।--बलराम अग्रवाल]
बलराम अग्रवाल द्वारा लिखित 'चन्ना चरनदास' की कहानियाँ सीधे-सादे ढंग से देखे-सुने लोगों की कथा-कहानी हैं। आजकल की अधिकांश कहानियाँ सीधे-सादे ढंग से नहीं कही जातीं। उनमें शिल्प की चमक ज्यादा पाई जाती है। वे पाठकों को चौंकाती ज्यादा हैं, प्रभावित कम कर पाती हैं। 'चन्ना चरनदास' की कहानियाँ दूसरे ढंग की हैं। ये कहानियाँ देर तक पाठक को अपने में बाँधे रहती है> संग्रह की शीर्षक कहानी 'चन्ना चरनदास' का प्लॉट काफी सीधा और सपाट है; लेकिन इसी सीधे-सपाट बयान में संयुक्त परिवार को जोड़कर रखने वाली नैतिकता का संदेश बहुत सीधे ढंग से दिया गया है। वस्तुत: इतने सीधे ढंग से कहानी कहकर उसे आकर्षक बनाए रखना भी कला है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। जीवन अपने आप में बहुत कलाकारिता समेटे है। उसके किसी अंश को कथा का आधार बनाएँ तो कला अपने आप आ जाती है। 'चन्ना चरनदास' के अतिरिक्त कहानी संकलन में छोटी-बड़ी तीस कहानियाँ और हैं। लेकिन, जो कहानी मुझे सबसे अच्छी लगी, वह है--'वह हथेली औरत की नहीं थी'। इस कहानी में एक सामान्य नाक-नक्श चेहरे वाली औरत के संघर्षशील चरित्र के परस्पर विरोधी व्यक्तित्व को बड़ी कुशलता से उभारा गया है। एक सामान्य औरत अपने औरतपने को दुर्बल स्थितियों में कैसे सँभालती है, इसकी मार्मिकता व्यंजित है। ट्रेन में अकेले सफर कर रही उस औरत का रूखा बर्ताव उसकी सुरक्षा का कवच है। लेकिन आत्मीयता का विश्वास पाते ही वह विनम्र हो जाती है। हमारे यहाँ औरत को अरक्षित, हमेशा दब्बू और भयभीत रहने वाली समझा जाता है। इस कहानी में दिखाया गया है कि संघर्षपूर्ण स्थितियों से टक्कर लेने की क्षमता ने औरत को कितना समझदार और दुनियादार बना दिया है। और इन सब विपरीत परिस्थितियों के बीच वह पति-प्रेम की अनन्यता कैसे सँभाले है। आज नारी चेतना वाली अनेक कहानियों से बलराम अग्रवाल की यह कहानी मुझे ज्यादा अच्छी लगी। संग्रह में अनेक लघुकथाएँ संग्रहीत हैं।बलराम अग्रवाल की ये कहानियाँ संवेदनशील कहानियाँ हैं। उनके पास आंचलिक भाषा और जीवन का अनुभव है जिसे शिल्प साधना के जरिए कहानी-कला में ढालकर उल्लेखनीय और भी कहानियाँ लिखी जा सकती हैं। उन्हें आगे अभी बहुत-कुछ सीखना और जानना भी है।
समीक्षक संपर्क : बी-5 एफ-2, दिलशाद गार्डन, दिल्ली-95
समीक्षक संपर्क : बी-5 एफ-2, दिलशाद गार्डन, दिल्ली-95