दिनांक 18-12-2019 से आगे…
[श्री धर्मेंद्र राठवा 'स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी लघुकथा : समीक्षात्मक अनुशीलन' विषय पर पी-एच.
डी. की उपाधि हेतु सरदार पटेल विश्वविद्यालय वल्लभ विद्यानगर, जिला आणंद के
अंतर्गत एक महाविद्यालय में शोधरत हैं और अध्यापनरत भी हैं। दिनांक 2 दिसम्बर 2019 और 18 दिसम्बर 2019 को उनके 2-2 सवालों के
जवाब दिये जा चुके हैं। आज प्रस्तुत हैं उनसे आगे के 3 अन्य सवाल और उनके जवाब—बलराम अग्रवाल]
धर्मेंद्र राठवा : लघुकथाएँ आज काफी विषयों पर लिखी जा रही हैं, फिर भी क्या आपको लगता है, कोई ऐसा विषय
है जिन पर अभी तक लेखन नहीं हुआ है?
बलराम अग्रवाल : लेखन के विषय
अधिकतर समय-सापेक्ष होते हैं। कोई लेखक जब किसी ऐतिहासिक/पौराणिक घटना/पात्र को
रचना में स्थान देने का विचार बनाता है, तब उसके पीछे भी उक्त घटना/पात्र के
माध्यम से ‘आज’ को प्रस्तुत करने की दृष्टि काम कर रही होती है। लघुकथा के विषय भी
समय-सापेक्ष ही हैं। लेकिन लघुकथा-लेखन हेतु विषय चुनते समय एक बात जरूर याद रखनी
चाहिए; वो यह, कि लघुकथा के फॉर्म में किसी भी विषय की प्रस्तुति एक जटिल
प्रक्रिया है। खुलते जाने की जितनी छूट कथाकार को कहानी देती है, लघुकथा उतनी नहीं
देती। यह कॉम्पेक्ट यानी सुसंबद्ध होने और वैसा ही बने रहने की पक्षधर विधा है। वर्तमान
समय में अधिकतर लघुकथाकारों पर ‘गिने-चुने विषयों से बाहर न आने’ का आरोप लगता रहा
है। उसका कारण यही है कि वे अपने समय की उस गहराई में उतरकर नहीं लिख पा रहे हैं,
जिसमें उतरने की अपेक्षा लघुकथा के समकालीन पाठक को उनसे है।
धर्मेंद्र राठवा : लघुकथा विधा को और सशक्त होने के लिए क्या आवश्यक है ? अधिक से अधिक लघुकथा लेखन, लघुकथा
सम्मेलनों का आयोजन या कुछ और ?
बलराम अग्रवाल : लघुकथा विधा
को और सशक्त होने के लिए मेरी दृष्टि में जो बातें आवश्यक हैं, वो मुख्यत; इस
प्रकार हैं—
1. ‘स्वतंत्र लेखक’ होने का तमगा सीने पर लटकाए घूमने की बजाय लेखक को व्यापक
अर्थों में स्वतंत्र मानसिकता का होना चाहिए। विचारधारा-विशेष से बँधा लेखक
‘सर्वहिताय’ नहीं लिख सकता।
2.
अपने सामाजिक सरोकारों का ज्ञान हो और मर्यादापूर्वक उनके
निर्वहन के प्रति सचेत भी रहता हो।
3.
अपनी मानसिक स्वाधीनता को बचाए रखने के प्रति सचेत और
अभिव्यक्त होने के प्रति साहसी हो।
4. अपने समय
की सभी विधाओं में अभिव्यक्ति पा रहे विषयों,
शैलियों और शिल्पों से गुजरते रहने का अभ्यस्त हो।
धर्मेन्द
राठवा : वर्तमान समय में समीक्षा से लघुकथा-लेखन में सुधार की कितनी सम्भावना देखते हैं आप ?
बलराम
अग्रवाल : धर्मेन्द्र,
समीक्षा और आलोचना में तत्त्वतः कुछ अन्तर है। वो यह कि
समीक्षा अपने आप को रचना तक ही सीमित रखती है। उसकी गहराई में जाने की जरूरत उसे
नहीं महसूस होती। आलोचना कथ्य के समूचे सिनेरियो को देखकर उस पर बात करती है। इस
अन्तर के मद्देनजर देखा जाए, तो लेखन में सुधार की जो गुंजाइश आलोचना से बनती है,
वह गुंजाइश समीक्षा से अनुपाततः नहीं ही बनती है।
आलोचना की प्रक्रिया में कृति की व्याख्या कभी-कभी उतना विस्तार पा जाती है,
जितना कि स्वयं रचनाकार ने भी नहीं सोचा होता। ऐसा होना
किंचित भी गलत नहीं है; लेकिन यह तभी सम्भव हो पाता है जब आलोचक कथ्य के विषय का
गहरा ज्ञाता हो। पूर्व-प्रचलित नाटक, कविता, उपन्यास, कहानी विधाओं के अनेक आलोचक इस स्तर के रहे हैं। इन दिनों
भी हैं; लेकिन लघुकथा को वे उपलब्ध नहीं हैं। उस ऊँचाई तक अपनी
लघुकथाओं को अभी शायद हम पहुँचा नहीं पाए हैं।
अध्ययन और अनुभव के आधार पर हर व्यक्ति की दृष्टि का विस्तार होता है,
चीजों को समझने का उसका विज़न बढ़ता है—यह अटल सत्य है। लेकिन ‘नाम’ और ‘दाम’—ये दो लालसाएँ भी इस मार्ग में आ जुड़ती हैं। सभी तो नहीं,
लेकिन इन लालसाओं की चपेट में आकर कुछ लोग,
वे रचनाकार भी हो सकते हैं और विचारक भी,
विचारधारा-विशेष से जा जुड़ते हैं। अतीत बताता है कि अवसर का
लाभ उठाते हुए विचारधारा-विशेष से जुड़कर अनेक लोगों ने ‘नाम’ भी खूब कमाया और
‘दाम’ भी; लेकिन यह तथ्य भी समय-समय पर सामने आता रहा है,
कि बहुत-से जेनुइन रचनाकारों और विचारकों को इन्होंने आगे
नहीं आने दिया। तात्पर्य यह कि विचारधारा-विशेष ने व्यक्तित्व को सामान्यतः संकुचित
ही अधिक किया है, विस्तार नहीं पाने दिया,
विवेकशील नहीं रहने दिया। यह भी कह सकते हैं कि
विचारधारा-विशेष, लेफ्ट या राइट, वह कोई भी हो, ‘स्वतंत्रता’ और ‘जनोत्थान’ के अपने अलग मानक और परिभाषाएँ
गढ़ लिया करती है और ‘जेहाद’ जैसे हिंसक मार्ग पर चल निकलती है।
सम्पर्क—धर्मेन्दकुमार हरसिंहभाई राठवा, पीएच.डी शोध-छात्र, हिन्दी विभाग, सरदार पटेल विश्वविद्यालय, वल्लभ विद्या नगर-388120, जिला-आणंद (गुजरात)
Mo- 9879345581 @ Email : dh.rathva83@gmail.com
साभार, 'साहित्य यात्रा' (लघुकथा विशेषांक), अक्टूबर-दिसम्बर, 2019
साभार, 'साहित्य यात्रा' (लघुकथा विशेषांक), अक्टूबर-दिसम्बर, 2019