उमेश महादोषी की बलराम अग्रवाल से बातचीत की दूसरी कड़ी
…गतांक से जारी
…गतांक से जारी
चित्र:बलराम अग्रवाल |
उमेश महदोषी: आठवें
दशक के लघुकथा के कई प्रमुख नायक नवें दशक के बाद निष्क्रिय होते
गये। इसके पीछे आपको कौन-कौन से कारण जिम्मेदार लगते हैं? इन कारणों को आप
साहित्य या लघुकथा लेखन से जनित निराशा से सम्बद्ध मानते हैं या फिर इसमें
सामाजिक एवं लेखन से इतर अन्य कारकों की कोई भूमिका है?
बलराम अग्रवाल : देखिए, समान ‘वस्तु’ को कुछेक अवान्तर प्रसंगों के सहारे
विस्तार देकर कुछ कथाकार कहानी बनाकर प्रस्तुत करने के अभ्यस्त हैं तो कुछ अवांतर प्रसंगों
की घुसपैठ को अनावश्यक मानते हैं। सामान्यत: पाठक को भी अवान्तर प्रसंगों में घुसना
रोचक नहीं लगता है; लेकिन उसके मनोमस्तिष्क पर कहानी का पारम्परिक प्रारूप इतना हावी
है कि अवान्तर प्रसंगों से हटना उसे भयभीत करता है। यह स्थिति किसी समय अंग्रेजी कहानीकारी
की रह चुकी है जिनकी रचना (कहानी यानी शॉर्ट स्टोरी) को उपन्यास के पाठकों और समालोचकों
द्वारा वर्षों यह कहकर नकारा जाता रहा कि इतने कम शब्दों में जीवन की घटनाओं को व्यक्त
नहीं किया जा सकता; और यह कि कहानी लेखन में केवल वे ही महत्वाकांक्षी उतर रहे हैं
जो उपन्यास लिखने में अक्षम हैं। ये दोनों ही नकार आखिरकार निराधार भय ही साबित हुए
और ‘शॉर्ट स्टोरी’ ने अपनी जगह आम पाठकों के बीच बना ही ली। कथा-लेखन में अक्षम होने
संबंधी आरोपों का जो दंश पूर्ववर्ती अंग्रेजी कहानीकारों ने झेला था, वही दंश हिन्दी
लघुकथाकार भी झेल रहे हैं। मुझे विश्वास है कि जो सूरज उन्होंने देखा था, वही लघुकथाकार
भी अवश्य देखेंगे।
उमेश महादोषी: एक तरफ नवें दशक के बाद कई
वरिष्ठ कथाकार लघुकथा लेखन के प्रति अनासक्त हो
गए, वहीं अनेक नए लेखक लघुकथा लेखन के प्रति
आकर्षित हुए। रचनात्मकता के
कारणों और परिस्थितियों के सन्दर्भ में इस परिदृश्य को आप किस तरह
देखते हैं?
बलराम अग्रवाल : जब आप ‘सकाम’ लेखन करते हैं तो निश्चय ही आपकी नजर लेखन
की बजाय कहीं और टिकी होती है। उस उद्देश्य की प्राप्ति में देरी आप में लेखन के प्रति
उकताहट पैदा करती है और आपको वहाँ से हट जाने को विवश कर देती है। लघुकथा के जिन वरिष्ठों
की ओर आप लघुकथा-लेखन से अनासक्त या विरक्त होने का संकेत कर रहे हैं उनमें से कुछ
ने केवल लघुकथा-लेखन ही छोड़ा है, लेखन नहीं; यानी कि आकांक्षाओं की पूर्ति के उन्होंने
अन्यान्य क्षितिज तलाश लिए हैं जहाँ परिणाम तत्काल नहीं तो बहुत जल्द मिलने की उम्मीद
हो।
उमेश महादोषी: नयी
पीढ़ी के रचनाकारों में लघुकथा लेखन के प्रति आकर्षण को आप कितना
वास्तविक और सार्थक मानते हैं? क्या ये रचनाकार लघुकथा में लेखन का
कोई ‘विजन’
देते दिखाई देते
हैं?
बलराम अग्रवाल : नयी पीढ़ी के रचनाकारों में लघुकथा लेखन
के प्रति आकर्षण पर शक करने का कोई कारण मुझे
नजर नहीं आता है। अगर कोई कथाकार सार्थक लघुकथाएँ दे पाने में सफल रहता तो उसके आगमन
को वास्तविक ही माना जायेगा। सभी में न सही, नये आने वाले कथाकारों में से कुछ में
‘विज़न’ है।
उमेश महादोषी:
लघुकथा में कथ्य और शिल्प की नकारात्मकता से जुड़ी चीजें, लेखकों की भीड़ के साथ आई। एक समय इन चीजों से पीछा छुड़ाने की कोशिशें भी दिखने
लगी थीं। परन्तु आज के समूचे लघुकथा-परिदृश्य पर दृष्टि डालने पर वे सब
चीजें फिर से दिखाई देती हैं। ऐसा क्यों? कहीं न कहीं इसमें नयी पीढ़ी के
लघुकथाकारों की लापरवाह छवि ध्वनित नहीं होती है? इसमें पुरानी पीढ़ी
की भूमिका पर आप क्या कहेंगे?
बलराम अग्रवाल : नया लेखक पूर्ववर्ती लेखन का अनुगमन करता है। इस अनुगमन
से कोई जल्दी पीछा छुड़ाकर अपना रास्ता बना लेता है, कोई देर से छुड़ा पाता है; और कोई
ऐसा भी होता है जो ताउम्र अनुगामी ही बना रहता है, अपनी कोई धारा स्वतंत्रत: नहीं बना
पाता। जहाँ तक लघुकथा की बात है, सभी जानते हैं कि यह लघुकाय कथा-विधा है। सब बस इतना
ही जानते हैं, यह नहीं जानते कि ‘लघुकाय’ में छिपा क्या-क्या है, उसमें साहित्यिक गुणों
का समावेश कथाकार ने किस खूबी के साथ कर दिया है और यह भी कि प्रचलित कथा-रचनाओं की
प्रभावान्विति से अलग और विलक्षण उसने कुछ ऐसा पाठक को दे दिया है कि वह अचम्भित है।
अचम्भित चौंकाने वाले अर्थ में नहीं; बल्कि इस अर्थ में कि जो बात इस लघुकथाकार ने
कह दी है, वह साधारण होते हुए भी स्वयं उसके जेहन से दूर क्यों थी?
('अविराम साहित्यिकी' अप्रैल-जून 2014 से साभार)