[दोस्तो, ‘कथादेश’ के संपादक महामना हरिनारायण जी के इस आश्वासन के बाद कि ‘आप मित्र हैं इसलिए कथादेश में आपके संग्रह की समीक्षा के लिए स्थान बना दिया जाएगा, अन्यथा पत्रिका के जारी स्तम्भों के बीच एक अतिरिक्त समीक्षा के लिए स्थान निकालना असम्भव ही रहता है’ अपने कथा-संग्रह ‘चन्ना चरनदास’ की प्रस्तुत समीक्षा की मूल प्रति उन्हें सौंप दी थी। आ॰ विन्दुमाधव मिश्र से भी वह परिचित हैं—यह बात इस समीक्षा को देखकर उन्होंने बताई थी। देने के उपरान्त यह करीब 10 माह उनकी फाइलों में पड़ी रही। आश्चर्यजनक बात यह हुई कि इस समीक्षा के कई माह बाद मेरे द्वारा की गई बलराम की एक पुस्तक की समीक्षा उन्हें दिये जाने के बाद ‘कथादेश’ के अगले ही अंक में छप गई। मैं चौंक गया। ‘कथादेश’ के कार्यालय में जाकर पूछने पर हरिनारायण जी ने, मैं इसे उनकी विवशता कहूँ या व्यापारबुद्धि, कहा—‘बलराम ने दो हजार का एक विज्ञापन दिला दिया था…इसलिए…’ मैं तब उनसे समीक्षा की इस प्रति को वापस माँग लाया। कथा संग्रह ‘चन्ना चरनदास’ 2005 में आया था और यह वाकया भी 2005-2006 का ही है। उसके बाद इस समीक्षा को मैंने उठाकर ही रख दिया। अब पुरानी फाइलों में यह मिली है तो कम्पोज़ करके आप तक पहुँचा रहा हूँ। –बलराम अग्रवाल]
बलराम अग्रवाल का ताजा कहानी संग्रह ‘चन्ना चरनदास’ कुछ कहानियों और कुछ लघुकथाओं का संग्रह है जो न सिर्फ उनकी रचनात्मक सामर्थ्य का प्रमाण हैं बल्कि सुरुचिपूर्ण छपाई और साज-सज्जा का नमूना भी है जिसे पाठक लम्बे अरसे तक याद रखने के लिए विवश रहेगा, ऐसा मेरा विश्वास है। इस पहले वाक्य में मुझे ‘कहानी’ और ‘कथा’ इन दो शब्दों को दो भिन्न अर्थों में इसलिए लिखना पड़ रहा है क्योंकि कहानी की समीक्षा में उपयुक्त लम्बाई की रचना को कहानी और छोटी या बहुत छोटी रचना को लघु विशेषण के साथ कथा कहने की अति विचित्र परंपरा बन गई है। लेखक स्वयं भी ‘कुछ कहानियाँ’ और ‘कुछ लघुकथाएँ’ कहकर इस परंपरा को पुष्ट करता है। हालाँकि उसे लघुकथा को कहानी से अलग हेय समझे जाने से सख्त ऐतराज है। वास्तव में छोटी कथा-रचनाओं का ‘लघुकथा’ नामकरण छायावादी कविता के च्युत कुछ लेखकों की रचनाओं के लिए 1925-1930 के आसपास हुआ था। इनमें राधिकारमण प्रसाद सिंह जैसे एकाध ऐसे भी लेखक थे जिन्हें बहुत दिनों तक याद रखा गया। इस पहले दौर की लघुकथाएँ केवल शब्द में कथा थीं, अर्थ में इनके भीतर कविता का गुंजार था। लेकिन आज स्थिति भिन्न है। आज लघुकथा को घटना, दृष्टांत अथवा प्रतीकात्मकता के प्रतिबिम्ब स्वरूप मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं के आकलन में अपनी लघुरूपात्मक स्थिति के बावजूद प्रभावसर्जक रचना स्वीकार किया जाता है। यदि कोई इसे दृष्टांतमूलक उपदेश अथवा भावुकता का उबाल या मनोरंजन का साथन मानता है तो निश्चय ही गलती करता है। मूल तत्त्व रचना का आकार नहीं है। कथा का मूलतत्त्व कथनीयता है। यह कथनीयता वक्र और ॠजु दोनों मार्गों में प्रतिफलित होती है और साहित्य की अन्यान्य विधाओं से अलग काहानी की भाषा के निर्माण की सामग्री बनती है।
बलराम अग्रवाल की रुचि कहानी की कथनीयता को ॠजु बनाए रखने में है। संग्रह की प्राय: सभी कहानियों में कथन की सहजता और सीधापन मूलवस्तु को विपथन से रोके रहता है। उलझाव से मुक्त तार्किक रूप में घटनाक्रम इस प्रकार निर्धारित होता है कि वह वास्तविकता का पर्याय बन जाता है। इन कथाओं में आदमी के आम सरोकार रेखांकित किए गए हैं। पहली कहानी में, जिसे संग्रह का नामकरण करने के लिए चुना गया है, सहज स्वाभाविक ईर्ष्या का अनिवार्य विस्फोट है। नायक चन्ना इससे बाखबर है। ईर्ष्या की प्रतिक्रिया से वह न केवल अनायास बचा रहता है अपितु उसमें रस भी लेता है। चन्ना सुचिंतित पारिवारिक नैतिकता से इस कदर अपने को जोड़े रखता है कि भाई के प्रति उसकी प्रतिबद्धता यथार्थ का श्रेष्ठ उदाहरण बन जाती है। क्योंकि यह नैतिकता भावुकता से उत्पन्न न होकर बुद्धि और तर्क के धरातल पर पुष्ट हुई है। तभी चन्ना वर्तमान ग्राम्य वातावरण में व्याप्त ईर्ष्या और साजिश से निस्पृह रहकर कर्त्तव्यबोध से शक्ति ग्रहण करता है।
बलराम अग्रवाल की रुचि कहानी की कथनीयता को ॠजु बनाए रखने में है। संग्रह की प्राय: सभी कहानियों में कथन की सहजता और सीधापन मूलवस्तु को विपथन से रोके रहता है। उलझाव से मुक्त तार्किक रूप में घटनाक्रम इस प्रकार निर्धारित होता है कि वह वास्तविकता का पर्याय बन जाता है। इन कथाओं में आदमी के आम सरोकार रेखांकित किए गए हैं। पहली कहानी में, जिसे संग्रह का नामकरण करने के लिए चुना गया है, सहज स्वाभाविक ईर्ष्या का अनिवार्य विस्फोट है। नायक चन्ना इससे बाखबर है। ईर्ष्या की प्रतिक्रिया से वह न केवल अनायास बचा रहता है अपितु उसमें रस भी लेता है। चन्ना सुचिंतित पारिवारिक नैतिकता से इस कदर अपने को जोड़े रखता है कि भाई के प्रति उसकी प्रतिबद्धता यथार्थ का श्रेष्ठ उदाहरण बन जाती है। क्योंकि यह नैतिकता भावुकता से उत्पन्न न होकर बुद्धि और तर्क के धरातल पर पुष्ट हुई है। तभी चन्ना वर्तमान ग्राम्य वातावरण में व्याप्त ईर्ष्या और साजिश से निस्पृह रहकर कर्त्तव्यबोध से शक्ति ग्रहण करता है।
चन्नाजैसाहीसाफमगरखुरदुराचरित्रकठोरहथेलीवालीऔरतकाहै।यहचरित्रउसवर्गकाहैजोमूल्यहीनतामेंसाँसलेताशहरकेगंदेवातावरणमेंरहनेकेलिएअभिशप्तहैफिरभीवहजीतेरहनेकेलिएअपनीकठोरताऔरक्रोधकीमुद्राकेचलतेन्यूनतमजगहबनालेताहै।स्त्रीकेप्रतिपुरुषकीलोलुपतासेसतर्करहतेहुएउसकेव्यक्तित्वकीउपरीकठोरपर्तकेनीचेसहजद्रवितहोनेवालास्त्रीहृदयबराबरकामकरताहै।यहाँकथाफिसलकरज्योंहीरागकाधरातलछूनेलगतीहै, उसकीहथेलीसामनेआजातीहैजिसकाकठोरस्पर्शऔरतकीहोतेहुएभीऔरतकीनहोनेकीघोषणाकरताहै।इसतरहकेअनेकचरित्रहैंजिन्हेंपहचाननेकीलेखकनेखूबसूरतचेष्टाकीहै।ऊपरसेइनकथाओंकीबुनावटइकहरीलगतीहै, लेकिनउनचरित्रोंकेविरोधीगुण-धर्मोंकाद्वन्द्वइन्हेंरोचकऔरविचारणीयबनाएरखताहै।इनकहानियोंमें ‘सहस्रधारा’ अलगमिजाज़कीरचनाहै।ज्यादातरहमरागकेएकहीपहलूसेपरिचितहैं।संयोगसेमिलगईलड़कीकास्वाभिमानउपहासबनकरऐसेछलकताहैकिपवित्रताकेछींटेनौजवानटूरिस्टकोभीगेरहनेकेलिएविवशकरदेतेहैं।ज्योंहीउसेअपनेप्रतिलड़कीकेआश्वस्तहोजानेकाअहसासहोताहै, वहउसकानामपूछलेनेकेअधिकारकाप्रयोगकरबैठताहै।अपनेप्रति ‘उठाईगीर’ होनेकीलड़कीकीधारणाकेकारणभीतरसेछिलजानेकीपीड़ाकीकसकसेनएसंबंधबननेकीसुखदअनुभूतिइसछोटी-सीकहानीकाप्राणहै।निश्चयहीरचनापाठककोलम्बेसमयतकउद्वेलितरखनेमेंसक्षमहोगी।
साहित्यमेंदलितशब्दकुछदिनोंसेकाफीलोकप्रियहोचलाहै।एककहानीकेलिएलेखकनेभीइसेचुनाहै।ताना-बानावहीअतिपरिचितदलितलड़केऔरब्राह्मणलड़कीवालाहै।लेकिनलड़केकाबड़ाभाईलेखकीयप्रतिबद्धताकासवालउठाकरउसमहानसामाजिकक्रान्तिकीसम्भावनापरपटाक्षेपकरदेताहै।कहानीकायहअन्तउनदलितवादियोंऔरप्रगतिशीलोंकोरुचिकरनलगेगा; लेकिनदलितलेखकोंकीसामाजिकक्रान्तिकेपीछेछिपीअसलियततोइससेउजागरहोहीजातीहै।लेखकसवर्णहै।केवलइसलिएकहानीकाढाँचाऐसानहींहै।आखिरकहानीकाप्रधानचरित्र—बड़ाभाई, भीदलितहैजोव्यक्तिकीनिकृष्टमानसिकताऔरतथाकथितक्रान्तिकेखोखलेपनकोउजागरकरताहै।दलितसाहित्यकीएकपहचानयहभीहैकिइनदलितलेखकोंकोसवर्णोंकेद्वारादलितसमस्याकोउठानाऔरउनकेप्रतिसहानुभूतिप्रकटकरनामंजूरनहीं।वेसवर्णोंकेअपमानमेंहीसामाजिकक्रान्तिकीसार्थकतादेखतेहैं।इससन्दर्भमेंयहकहानीइसदलितमानसिकताकीनिस्सारताकाप्रमाणसिद्धहोतीहै।
इसीतरह ‘कोख’ कहानीकावातावरणआधुनिकताकेघटाटोपसेढँकाहै।संतानेषणाकीपूर्त्तिकेलिएमोहसेअँधराईपत्नीसहेलीकीकोखसेपुत्रोत्पत्तिकेलिएपतिकोप्रेरितकरतेहुएनारीकीसहजसंवेदनाकोनकारकरपुत्रप्राप्तिकासपनादेखनेलगतीहै।यहींमातृत्वकाप्रश्नउसेमुँहफैलाएखड़ामिलताहै।पुत्राभावकीपीड़ासेप्रारम्भहुआप्रसंगपुत्राभावकीपीड़ापरहीसमाप्तहोताहै।बीचकाअन्तरालआधुनिकताकेअहंकारसेअपनीबुद्धिवादिता, तार्किकताऔरनिरर्थकदार्शनिकतासेभराहै।यहकहानीनारीसंवेदनाकीतरलताकेभ्रान्तप्रतिकारकापरिणामहै।यहसिलसिलाअभीऔरआगेबढ़ायाजासकताहै।इनतमामकहानियोंमेंआपसीरिश्तोंकीव्याख्या, संवेदनशीलहृदयकास्पंदन, अहंकारसेउपजीगिरावट, राजनीतिकीविडम्बना, भ्रष्टाचारकाखुलासा, संवेदनहीनसुखभोगजैसीअनेकस्थितियोंकाचित्रणकियागयाहै।इनकहानियोंकीज़मीनऐसीहैजहाँखड़ेहोकरकिसीकोभीअपनाचेहराआसानीसेदिखजाताहै।हिन्दीमेंकहानीऔरलघुकथाकेबीचअन्तरकीभ्रान्तिव्याप्तरहीहै।पश्चिमकेलेखकोंने ‘शार्टस्टोरी’ कीपरिभाषामेंव्याप्तिकीकाफीगुंजाइशरखीहै।इसीलिएभावात्मकता, दार्शनिकता, बौद्धिकता, तर्कशीलता, उपदेशात्मकताआदिसब-कुछउसकेउपभोगमेंसमाजाताहै।बलरामअग्रवालनेकहानीऔरलघुकथाकेअन्तरकोपाटनेकीप्रक्रियामेंकहानीकेमूलआधार—घटनाकोसर्वत्रमजबूतीसेपकड़ेरखाहै।प्रेमचंदसेआजतककीकहानीयात्रामेंसंरचनागतकाफीबदलावऔरविकासहुआहैजिसकामुख्यकारकतकनीकरहीहै।ढाँचागतइसबदलावकेऔचित्यपरविचारकरनायहाँअपेक्षितनहोतेहुएभीयहआसानीसेकहाजासकताहैकिकहानीकीसंरचनामेंयदिघटनाकेमहत्त्वकोअस्वीकारकियाजाताहैतोकहानीकीनींवखिसकजातीहै।अपवादस्वरूपएकाधरचनाकेअलावाइससंग्रहकीकहानियोंमेंघटनातत्त्वइसमज़बूतीसेस्थापितकियागयाहैकिअगरकहींउसकीकसावटढीलीभीपड़तीदिखाईदेतीहैतोभीकहानीकीमूलवस्तुकीहानिनहींहोती।इसदृष्टिसेदेखनेपरतकनीककेघटाटोपसेघिरीहिन्दीकहानियोंकेसमक्षइससंग्रहकीकहानियाँमज़बूतीसेखड़ीमिलतीहैं।समीक्षाकेमार्गएकसेअधिकहोतेहैं।अपनीरुचिऔरसंस्कारकेचलतेमुझेरचनाकोजिसकोणसेदेखने-परखनेकाअभ्यासहै, उसकेपरिणामस्वरूपइससंग्रहकीकहानियाँमुझेवर्तमानपरिप्रेक्ष्यमेंसार्थकऔरप्रभावशालीप्रतीतहोतीहैं।दूसरेपाठककीनजरइनकहानियोंसेगुजरतेहुएकहाँटिकतीहै, यहमेराविषयनहींहै।होसकताहैउसेइनमेंकहींकमीदिखाईदेजाए।फिरभी, दूसरापाठकइनकहानियोंमेंव्याप्तघटनामूलककथनीयताकीताकतसेप्रभावितहुएबिनानहींरहसकेगा।
श्यामलालकॉलेज(दिल्लीविश्वविद्यालय), शाहदरा, दिल्ली-110032
समीक्षितपुस्तक : चन्नाचरनदास; कथाकार : बलरामअग्रवाल; प्रकाशक : प्रखरप्रकाशन, 1/11486 ए, सुभाषपार्कविस्तार, नवीनशाहदरा, दिल्ली-32
पृष्ठसंख्या : 144; मूल्य : रु0 150/-
1 टिप्पणी:
DHANYAWAD BHAI. MUJHE ISKI ZAROORAT BHI THI.
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