बलराम अग्रवाल के लघुकथा सम्बन्धी आलोचना व समीक्षापरक विचारों का मंच। नन्हें-से वट-बीज से निकले हुए अकेले अंकुर ने सम्पूर्ण वन में ऐसा विस्तार कर लिया है कि सारे वृक्ष उसके नीचे आ गए हैं। (गाथा सप्तशती 7/70)
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