पाँचवीं किस्त दिनांक 26-01-2017
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प्रमुख
समकालीन लघुकथा लेखक : सामान्य परिचय-1
रावी—(पूरा
नाम रामप्रसाद विद्यार्थी 16-12-1911--9-9-1994)
हिन्दी लघुकथा को
साहित्यिक पहचान देने
की पहल करने वाले उल्लेखनीय कथाकार। रावी ने सन् 1948 से हिन्दी लघुकथा
लिखना शुरू किया। उनकी पहली लघुकथा ‘शीशम का खूँटा’ उनके लघुकथा संग्रह ‘मेरे
कथागुरु का कहना है’ भाग-1 में संग्रहीत है। ‘कन्हैयालाल मिश्र
‘प्रभाकर’, जगदीश चन्द्र मिश्र और हरिशंकर परसाई
का नाम भी लघुकथा के लिए आदर से याद किया जाता है, लेकिन रावी ने केवल लघुकथाएँ ही लिखीं। हाँ,
रावी की लघुकथाएँ आधुनिक लघुकथा से
भिन्न हैं। वे प्राचीन बोधकथाओं के अधिक निकट हैं।
रावी:फोटो-सुनील अनुरागी के सौजन्य से |
‘मेरे कथागुरु का कहना है’ शीर्षक से
उनकी लघुकथाओं का पहला संग्रह सन् 1958
में व इसी नाम से दूसरा संग्रह 1961 में भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित
किया गया था। रावी ने 30 से अधिक पुस्तकों की रचना की लेकिन
ख्याति उन्हें इन्हीं पुस्तकों से मिली। ‘रावी का समग्र साहित्य सहज मानवीय
संबंधों से परिपूर्ण आदर्श समाज की कल्पना का परिणाम है। इनकी लघुकथाएँ भी इनके
ऐसे वैचारिक आग्रह से संचालित हैं, यहाँ तक कि 1961 के 23 वर्ष पश्चात् 1984
में प्रकाशित ‘रावी की परवर्ती लघुकथाएँ’ में भी उसी आग्रह,
उसी शैली के दर्शन होते हैं’। ‘मेरे
कथागुरु का कहना है’ का प्रकाशन भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा तब हुआ था,
जबकि हिन्दी साहित्याकाश में लघुकथा की
चर्चा कनकैया (आसमान में उड़ने और कण-जैसी दिखने वाली एक चिड़िया) भर भी नहीं थी।
विष्णु प्रभाकर— शरत्चन्द्र की जीवनी ‘आवारा मसीहा’ के
लेखक के रूप में विशेष रूप
से ख्यात, 21 जून 1912 को उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर में जन्मे विष्णु प्रभाकर का बचपन हरियाणा के जिला हिसार में बीता। उन्होंने साहित्य की लगभग हर विधा में लेखन किया। उनकी लघुकथाएँ मानवीय आदर्श की विशेष पैरवी करती हैं। स्वयं प्रभाकर जी के अनुसार— ‘मेरी पहली लघुकथा ‘सार्थकता’ ‘हंस’ के जनवरी 1939 के अंक में प्रकाशित हुई थी।’ इसी ‘निवेदन’ के प्रारम्भ में वे लिखते हैं— ‘मेरी लघु रचनाओं का यह तीसरा संग्रह है। पहला संग्रह ‘जीवन पराग’ सन् 1963 में सस्ता साहित्य मंडल, दिल्ली से प्रकाशित हुआ था।... वे सभी सत्य पर आधारित थीं परन्तु सत्य मात्र होने के कारण कोई रचना कहानी नहीं बन जाती, इसलिए मैंने उन्हें लघुकथा कहकर रेखांकित नहीं किया था।’ ‘जीवन पराग’ की रचनाओं को प्रभाकर जी ने बाल-साहित्य के अन्तर्गत माना है। परन्तु अशोक भाटिया का मानना है कि ‘सन् 1951 में प्रभाकर जी की बोधपरक कथाओं का संग्रह ‘जीवन पराग’ नाम से प्रकाशित हुआ था। उसी संग्रह की कथाओं में कुछ और नई कथाएँ जोड़कर सन् 1982 में उन्होंने नया संग्रह ‘आपकी कृपा है’ नाम से प्रकाशित कराया।’
से ख्यात, 21 जून 1912 को उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर में जन्मे विष्णु प्रभाकर का बचपन हरियाणा के जिला हिसार में बीता। उन्होंने साहित्य की लगभग हर विधा में लेखन किया। उनकी लघुकथाएँ मानवीय आदर्श की विशेष पैरवी करती हैं। स्वयं प्रभाकर जी के अनुसार— ‘मेरी पहली लघुकथा ‘सार्थकता’ ‘हंस’ के जनवरी 1939 के अंक में प्रकाशित हुई थी।’ इसी ‘निवेदन’ के प्रारम्भ में वे लिखते हैं— ‘मेरी लघु रचनाओं का यह तीसरा संग्रह है। पहला संग्रह ‘जीवन पराग’ सन् 1963 में सस्ता साहित्य मंडल, दिल्ली से प्रकाशित हुआ था।... वे सभी सत्य पर आधारित थीं परन्तु सत्य मात्र होने के कारण कोई रचना कहानी नहीं बन जाती, इसलिए मैंने उन्हें लघुकथा कहकर रेखांकित नहीं किया था।’ ‘जीवन पराग’ की रचनाओं को प्रभाकर जी ने बाल-साहित्य के अन्तर्गत माना है। परन्तु अशोक भाटिया का मानना है कि ‘सन् 1951 में प्रभाकर जी की बोधपरक कथाओं का संग्रह ‘जीवन पराग’ नाम से प्रकाशित हुआ था। उसी संग्रह की कथाओं में कुछ और नई कथाएँ जोड़कर सन् 1982 में उन्होंने नया संग्रह ‘आपकी कृपा है’ नाम से प्रकाशित कराया।’
अपने लघुकथा लेखन के संबंध में प्रभाकर
जी का मानना था कि— ‘मैंने जिस रूप में कहानी और एकांकी की
विधा को अपनाया, उस रूप में लघुकथा को नहीं।’ फिर भी, लघुकथा की जनव्याप्ति को स्वीकारते हुए
वे कहते हैं— ‘जब अणु की शक्ति अपरिमित है,
तब लघुकथा मात्र लघु रचना कैसे रह
सकती है?’
11 अप्रैल, 2009 को नई दिल्ली में उनका निधन हो गया।
हरिशंकर परसाई— मध्य प्रदेश के जिला होशंगाबाद के
जमानी में 22 अगस्त 1924 को जन्मे परसाई जी समकालीन हिन्दी व्यंग्य के शीर्ष पुरुष हैं। सन् 1950 के आसपास उन्होंने अनेक लघुकथाएँ
लिखीं जो मुख्यतः तत्कालीन राजनीति में व्याप चुके भ्रष्टाचार एवं मूल्यहीनता को
केन्द्र में रखकर रची गई हैं। उनकी लघुकथाओं में व्यंग्याश्रित संवेदना ही अधिक
मिलती है। 1981 में प्रकाशित उनकी कृति 'विकलांग श्रद्धा का दौर' के अतिरिक्त सुप्रसिद्ध समालोचक धनंजय वर्मा द्वारा संपादित ‘परसाई समग्र’ के भाग 1 व 2 में उनकी लघुकथाएँ संकलित हैं।
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अगस्त 1995 को उनका निधन हो गया।
युगल— बिहार के मोहिउद्दीन नगर जिला समस्तीपुर में सन् 1925 की दीपावली (तदनुसार, 17 अक्टूबर 1925) के दिन जन्मे युगल जी के
‘किरचें’, ‘गर्म रेत’,
‘जब द्रोपदी नंगी नहीं हुई’,
‘पड़ाव से आगे’ तथा ‘फूलों वाली दूब’
लघुकथा संग्रह आ चुके हैं। इनके अलावा तीन
उपन्यास, तीन कहानी-संग्रह,
तीन नाटक,
दो कविता-संग्रह,
दो निबन्ध-संग्रह प्रकाशित। 1948 से 1962 तक
अनेक दैनिक, साप्ताहिक,
पाक्षिक, मासिक, त्रौमासिक,
अर्द्धवार्षिक पत्रा-पत्रिकाओं के
उपसम्पादक/सम्पादक रहे। 2003 से कुछ समय तक उन्होंने ‘फलक’ नाम से
लघुकथा-केंद्रित एक द्वैमासिक लघु-पत्रिका भी संपादित की थी। उन्होंने साहित्य की
लगभग सभी विधाओं में लेखन किया है। देश के अनेक पत्रों को युगल जी ने संपादक-उप
संपादक के तौर पर सेवा प्रदान की। अनेक प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा मानद उपाधियों
तथा अलंकरणों से सम्मानित व पुरस्कृत।
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अगस्त 2016 की प्रातः मोहिउद्दीन नगर में उनका
निधन हो गया।
सूर्यकांत नागर— मध्य प्रदेश के जिला शाजापुर में 3 फरवरी 1933 को जन्म। अनेक विधाओं में लेखन-प्रकाशन। अनेक साहित्यिक पत्रिकाओं
का संपादन। दो उपन्यास, नौ कहानी संग्रह,
दो निबंध संग्रह,
एक पत्रा संग्रह,
एक लघुकथा संग्रह ‘विषबीज’,
तीन सम्पादित लघुकथा संकलन,
एक आत्मकथ्य तथा लघुकथा-आलोचना पर अनेक
लेख तथा लघुकथा संग्रह 'विषबीज' प्रकाशित। अनेक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित।
उर्मि कृष्ण— मध्य प्रदेश के जिला हरदा में 14 अप्रैल 1938 को जन्म। कहानी, उपन्यास, यात्रा, व्यंग्य, नाटक और बाल साहित्य की लगभग अठारह पुस्तकें प्रकाशित। विभिन्न
रचनाओं का ब्रेल, गुजराती, मराठी व पंजाबी में अनुवाद। मध्य प्रदेश का सर्वोच्च ‘अक्षर आदित्य’
सम्मान तथा तीन कृतियों पर हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत। रचनाकर्म पर
पीएच.डी. एवं शोध।अनेक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित। कहानी लेखन महाविद्यालय, अम्बाला छावनी की संचालिका।
पृथ्वीराज अरोड़ा— वर्तमान पाकिस्तान स्थित सिखों के
पवित्र-धाम ननकाना साहिब के ग्राम बूचेकी में 10 अक्टूबर 1939 को जन्म। आठवें दशक के महत्वपूर्ण
हस्ताक्षर। लघुकथा-संग्रह ‘तीन न तेरह’ व ‘आओ इंसान बनाएँ’ के अलावा एक उपन्यास
‘प्यासे पंछी’, कहानी संग्रह ‘पूजा’ भी प्रकाशित। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय को
प्रशासनिक सुपरिन्टेंडेंट पद से सेवानिवृत्त। ‘लघुकथा शिखर सम्मान’ से सम्मानित,
लघुकथाओं पर लघु शोध प्रबन्ध।
20 दिसम्बर 2015 को करनाल स्थित अपने घर में उनका निधन
हो गया।
सतीश दुबे— 12 नवंबर 1940 को इंदौर में जन्मे सतीश दुबे जी को समकालीन लघुकथा का महत्वपूर्ण
स्तंभ माना जा सकता है। ‘सिसकता उजास’, ‘भीड़ में खोया आदमी’, ‘राजा भी लाचार है’ तथा ‘प्रेक्षाग्रह’ सहित अनेक लघुकथा संग्रह,
एक शोध-प्रबन्ध,
पंजाबी, मराठी, गुजराती, बांग्ला तथा तेलगु में लघुकथाएँ अनूदित एवं उनके संग्रह प्रकाशित,
एक पत्र-संग्रह,
बाल एवं प्रौढ़ साहित्य की छह पुस्तकें
तथा अनेक सम्पादित पुस्तकें। अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त,
विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित,
उपन्यास पर फिल्म का निर्माण तथा
शोधछात्रों द्वारा शोध-प्रबन्ध एवं लघु शोध-प्रबन्ध लेखन।
25 दिसम्बर, 2016 को इन्दौर में निधन।
सिमर सदोष— 2 अप्रैल, 1943 को गाँव खन्ना लुबाना,
जिला शेखपुरा (अब पाकिस्तान) में। एक
मुट्ठी आसमाँ (लघुकथा-संग्रह), एक और पारो, धूप की लकीर (कहानी-संग्रह),
सफर जारी है (कविता-संग्रह),
दैनिक हिन्दी मिलाप तथा दैनिक वीर
प्रताप में दो उपन्यास धारावाहिक प्रकाशित, अनेक रचनाएँ दूसरी भाषाओं में अनूदित एवं प्रकाशित,
आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से रचनाओं का
निरन्तर प्रसारण, कुछ रचनाएँ पाठ्यक्रमों में
सम्मिलित। अजीत समाचार (हिन्दी),
जालन्धर में समाचार सम्पादक।
राष्ट्रपति से मानद सम्मान सहित अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत।
विक्रम सोनी— 25 मई 1943 को बैकुण्ठपुर, कोरिया, छत्तीसगढ़ में जन्मे सोनी जी को लघुकथा
की सिरमौर पत्रिका ‘लघु आघात’ का संपादन करने का श्रेय प्राप्त है। जनवरी 1989 में इनकी 30 लघुकथाओं का संग्रह ‘उदाहरण’ प्रकाशित
हुआ। लघुकथा संकलन ‘पत्थर से पत्थर तक’, ‘छोटे छोटे सबूत’, ‘मानचित्र’, ‘दरख्त’ का भी संपादन किया। राजकीय सेवा से निवृत होने के बाद पक्षाघात के शिकार हो उज्जैन स्थित अपने निवास
पर कायिक रूप से असहाय पड़े रहे।
4 जनवरी 2016 को उज्जैन स्थित अपने घर में उनका निधन हो गया।
रूप देवगुण— 1 नवम्बर, 1943 को नरवड़ (लाहौर, अब पाकिस्तान ) में। लघुकथा के वरिष्ठ हस्ताक्षर। छह कहानी-संग्रह, तेरह कविता-संग्रह, चार एकल लघुकथा-संग्रह, एक गजल-संग्रह, एक लघुकथा निबन्ध-संग्रह, एक पंजाबी कहानी-संग्रह, एक समीक्षात्मक पुस्तक तथा लघुकथा के दस से अधिक सम्पादित संकलन। अनेक
संस्थाओं द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत।
रामकुमार आत्रेय— 01 फरवरी, 1944 को हरियाणा अन्तर्गत जिला कैथल के करोड़ा नामक
गाँव में जन्मे आत्रेय जी के तीन लघुकथा संग्रह— इक्कीस जूते, आँखों वाले अंधे तथा छोटी-सी बात,
बिना शीशों का चश्मा के अतिरिक्त चार
कविता संग्रह तथा तीन-बाल-कथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। ‘पिलूरे तथा अन्य
कहानियाँ’ कहानी संग्रह। अध्यापन कार्य से
काफी समय पूर्व स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के उपरान्त सम्प्रति स्वतन्त्र लेखन
कर रहे हैं। हिन्दी की लगभग सभी सम्मानित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ लगातार
प्रकाशित। हरियाणा साहित्य अकादमी से पुरस्कृत, 'दैनिक भास्कर' पत्र तथा 'वर्तमान साहित्य' पत्रिका व विभिन्न संस्थाओं
द्वारा सम्मानित।
भगीरथ— कुछ लोगों को भगीरथ और भगीरथ परिहार, इन दो नामों वाले दो अलग-अलग लेखक होने का भ्रम हो सकता है,
लेकिन ये एक ही व्यक्ति के दो नाम हैं।
इनका जन्म 2 जुलाई, 1944 जिला पाली (राजस्थान) के अन्तर्गत ग्राम सेवाड़
में हुआ। समकालीन लघुकथा की पहली पीढ़ी के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर। लघुकथा-संकलन
‘गुफाओं से मैदान की ओर’ (रमेश जैन के साथ), ‘राजस्थान की सर्वश्रेष्ठ लघुकथाएँ’, ‘पंजाब की सर्वश्रेष्ठ लघुकथाएँ’ लघुकथा-केन्द्रित अनियतकालीन पत्रिका
‘अतिरिक्त’ का 1972 से 1974 तक तथा कविता-केन्द्रित अनियतकालीन पत्रिका ‘मोर्चा’ व ‘अलाव’ का 1975 से 1977 तक सम्पादन-प्रकाशन। लघुकथा-संग्रह ‘पेट सबके हैं’ प्रकाशित।
चित्रा मुद्गल— 10 दिसंबर 1944 को तमिलनाडु के चेन्नै नगर में जन्मी
चित्रा जी इन दिनों प्रतिष्ठित उपन्यास लेखिका हैं, लेकिन लघुकथा-लेखन से इनका नाता आठवें दशक से ही है। लघुकथा की
तत्कालीन प्रतिष्ठित पत्रिकाओं ‘लघु आघात’, ‘सारिका’ आदि में इनकी लघुकथाएँ लगातार स्थान पाती रही हैं। ग्यारह
कहानी-संग्रह, चार उपन्यास,
चार बालकथा-संग्रह,
पाँच सम्पादित पुस्तकें,
गुजराती से दो अनूदित पुस्तकें तथा दो
वैचारिक संकलन तथा छह सम्पादित कृतियाँ प्रकाशित। इनकी लघुकथाओं का संग्रह ‘बयान’
(2003) भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली से प्रकाशित हो चुका है। उपन्यास
‘आवाँ’ विश्वभर में चर्चित, कथा यू.के. आदि अनेक अन्तर्राष्ट्रीय व
राष्ट्रीय सम्मान व पुरस्कार। संप्रति स्वतन्त्र लेखन। अनेक राष्ट्रीय एवं
अन्तर्राष्ट्रीय साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित।
इस समूची श्रंखला में प्रकाशित सभी लेखों को एक जगह
पढ़ने के लिए मँगाएँ…
|
हिन्दी लघुकथा का मनोविज्ञान, लेखक : बलराम अग्रवाल, प्रकाशक : राही प्रकाशन,
एल-45, गली नं॰ 5, करतार
नगर, दिल्ली-53
|
1 टिप्पणी:
Saadar dhanywad itni mahatvapurn jankariyo ke liye.
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