सोमवार, 24 मई 2021

हिन्दी लघुकथा : सीता हाँडा बनाम शकुन्तला किरण / बलराम अग्रवाल

इसी ब्लॉग पर 17 जनवरी 2015 को मैंने एक पोस्ट लिखी थी—‘हिन्दी लघुकथा:शोध की स्थिति’। लिंक https://wwwlaghukatha-varta.blogspot.com/2015/01/blog-post.html

 खेद है, उसी सम्बन्ध में पुन: लिखना पड़ रहा है। अभी, डॉ॰ शकुन्तला किरण (जन्म-07 फरवरी 1943) का देहावसान (23 मई 2021) हुआ है। उनके निधन पर शोकांजलि प्रस्तुत करते हुए डॉ॰ सत्यवीर मानव ने अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा है—‘हिन्दी लघुकथा की ऐतिहासिक पुस्तक ‘हिन्दी लघुकथा’ की लेखिका और हिन्दी लघुकथा पर दूसरा शोधकार्य करने वाली शकुन्तला किरण हमारे बीच नहीं रहीं।’

इस शोकांजलि में सुधरा हुआ तथ्य यह है कि डॉ॰ शकुन्तला किरण छठे से दूसरे स्थान पर आ गयी हैं। डॉ॰ रामकुमार घोटड़ की सूची में (देखें उनके द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘भारत का हिन्दी लघुकथा संसार’, वर्ष 2011, पृष्ठ 160) वह छठे स्थान पर थीं।

शोध को मैं ‘नवीन तलाश’ की उत्कंठा और उसकी कार्यान्विति के रूप में देखता हूँ, न कि कुछेक पूर्वाग्रहों को पाले रखने और दोहराते जाने के रूप में। वर्ष 2015 के आसपास से हिन्दी लघुकथा में प्रथम शोध को लेकर एक पूर्वाग्रह उभरकर आया था। यह कि ‘हिन्दी लघुकथा विषय को लेकर प्रथम शोधकर्ता/शोधकर्त्री डॉ॰ सीता हाँडा हैं जिन्होंने सन् 1959 में राजस्थान विश्वविद्यालय से ‘आधुनिक हिदी साहित्य में लघुकथाओं के विकास का विवेचनात्मक अध्ययन’ विषय पर पी-एच॰ डी॰ शोधोपाधि ग्रहण की।’

गत सम्भवत: 2017 में लघुकथा सम्बन्धी शोध के दौरान ही मुझे एक पुस्तक मिली थी—'हिन्दी के स्वीकृत शोधप्रबन्ध' (लेखक उदयभानु सिंह, प्रथम संस्करण : 1959, संशोधित संस्करण : 1963; हिन्दी अनुसन्धान परिषद, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली के निमित्त इसे नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली ने प्रकाशित किया था।)

इस पुस्तक की मानें तो सीता हाँडा के शोध-विषय के सम्बन्ध में दिया गया लघुकथा सम्बन्धी उपर्युक्त तथ्य वस्तुत: गलत है। (देखेें, उक्त पुस्तक के पृष्ठ 343 की फोटो)

सम्भवत: डॉ॰ घोटड़ की ही खोज का अनुसरण  और परिवर्द्धन करते  हुए डॉ॰ सत्यवीर मानव ने अपनी शोकांजलि प्रस्तुत की है। यद्यपि मैं अब से पहले भी अपने अन्वेषक साथियों से अनुरोध करता रहा हूँ कि वे डॉ॰ सीता हाँडा के शोध-प्रबन्ध की प्रति प्रमाणस्वरूप प्रस्तुत करें। उक्त शोध की फोटोकॉपी उतरवाने, बाइन्डिंग कराने और डाक से भेजने का खर्चा मैं वहन करूँगा। डॉ॰ घोटड़ श्रमशील, जुझारू और ईमानदार लेखक हैं; लेकिन कुछ जगह वे चूक जाते हैं। मैं समझता हूँ कि सबसे पहले तथ्य प्रस्तुत करने की हड़बड़ी में उनसे चूक हुई होगी। डॉ॰ सत्यवीर मानव भी मेरे छोटे भाई सरीखे हैं। उन्होंने गहन अध्ययन किया है और डी॰ लिट्॰ शोधोपाधि ग्रहण की है। वे अवश्य जानते होंगे कि शोध में प्रामाणिकता का क्या महत्व है। वस्तुत: प्रामाणिक तथ्य ही शोध को विश्वसनीय बनाते हैं। यहाँ मैं फोटो के रूप में कुछ तथ्य प्रस्तुत कर रहा हूँ जिनके आधार पर डॉ॰ सीता हाँडा के शोध का विषय ही ‘लघुकथा’ से भिन्न सिद्ध हो जाता है। तथ्य यह है कि सीता हाँडा के शोध का वर्ष और विश्वविद्यालय का नाम तो ठीक लिखा गया है, लेकिन विषय में परिवर्तन कर दिया गया है। यह विषय परिवर्तन हमें डॉ॰ गिरिराज शरण अग्रवाल द्वारा सम्पादित ‘शोध संदर्भ’ के तत्सम्बन्धी यानी वर्ष 1959 के खण्ड में मिलता है। उक्त खण्ड में सीता हाँडा के शोधोपाधि प्राप्त मूल विषय ‘आधुनिक हिदी साहित्य में आख्यायिकाओं के विकास का विवेचनात्मक अध्ययन’ में ‘आख्यायिका’ के स्थान पर ‘लघुकथा’ लिखकर उसे ‘‘आधुनिक हिदी साहित्य में लघुकथाओं के विकास का विवेचनात्मक अध्ययन’ कर दिया गया है। चाहे जानबूझकर ऐसा किया गया, चाहे अनजाने में ऐसा हुआ है; लेकिन तथ्यात्मक दृष्टि से हुआ बहुत गलत है। ऐसा लगता है कि हमारे उत्कंठी मित्रों ने ‘शोध सन्दर्भ’ की सूचना को ही प्रामाणिक और अन्तिम मान लिया है।

उनके भ्रम के निवारणार्थ एक पुस्तक के कुछ जरूरी पन्नों की फोटोप्रति इस आलेख के साथ प्रस्तुत है। 

मोबाइल : 8826499115

3 टिप्‍पणियां:

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

वन्दन

इस सामग्री को सितम्बर अंक हेतु सुरक्षित करना चाह रही हूँ... सादर अनुरोध है कि अनुमति मिलेगी

सादर

Sandeep tomar ने कहा…

ठीक है, जैसा आपने लिखा मान लेते हैं।

बलराम अग्रवाल ने कहा…

बाध्यता नहीं है। जैसा आपका विवेक कहे, वैसा मानें।