मंगलवार, 7 मार्च 2023

हिन्दी लघुकथा : आदिमकाल से अबतक--तीसरी यानी अन्तिम कड़ी / बलराम अग्रवाल

पत्रिका  'इन्द्रप्रस्थ भारती' की सहायक संपादक निशा निशान्त जी ने यह लेख 'आजादी का हीरक महोत्सव' के अवसर पर विशेष रूप से लिखवाया था। अब यह उक्त पत्रिका के अक्तूबर 2022 में छपकर 18-02-2023 को प्राप्त हुआ था। बहन निशा निशान्त का आभार। 'हिन्दी लघुकथा : आदिमकाल से अबतक' शीर्षक उक्त लेख की पहली कड़ी इस पटल पर 18 फरवरी, 2023 को तथा दूसरी कड़ी 5 मार्च, 2023 को पोस्ट की गयी थी। आज 7 मार्च, 2023 को प्रस्तुत है, अपेक्षाकृत लम्बे उक्त लेख की तीसरी यानी अन्तिम कड़ी  :

बलराम अग्रवाल

सन् 1971 ई से 2000 ई तक

हिंदी की गद्यपरक लघुकथा के धारावाहिक इतिहास में सन् 1970 ई. एक  प्रकार का समय-विशेष था। यों तो लघुकथा लेखन के प्रसार का प्रारंभ बहुत समय पूर्व ही हो चुका था और कितने ही प्रतिभाशाली लेखक समय-समय पर उत्पन्न हो चुके थे जो अपनी लघुकथाओं की विशेष छाप हिंदी कथा साहित्य पर लगा चुके थे; परंतु सन् 1970 ई. के समाप्त होते-होते हिन्दी में लघुकथा लेखन  का प्रचार-प्रसार एकाएक बढ़ा और उसे हवा मिली उस समय की व्यावसायिक कथा पत्रिका सारिका के सम्पादक कमलेश्वर से।



लघुकथा के स्वरूप में परिवर्तन मुख्यतः सन् 1970 के बाद ही दृष्टिगोचर होता है। सन् 1974-75 तक लघुकथा का रूप और वृत्ति भावपरकता, बोधपरकता एवं दृष्टान्तपरकता से आगे बढ़कर गलित रूढ़ियों, अंधविश्वासों, अतिविश्वासों और छद्म नैतिकता आदि पर कटाक्ष प्रस्तुत करती पैरोडीपरक लघ्वाकारीय रचना में बदल जाती हैं। तत्पश्चात् 1975-76 से उसमें परिवर्तन के उद्वेलनकारी गम्भीर चिंतन बिन्दु दिखाई देने लगते हैं जो शनैः शनैः विकसित होकर अपने समय और समाज की समकालीन प्रगतिशील आकांक्षाओं का यथार्थ प्रतिनिधित्व करने लगते हैं। ‘लघुकथा’ शब्द भी इस दशक के पूर्वार्द्ध में स्थिर किया गया। आठवें दशक के प्रारम्भ यानी 1971 से जिन लघु पत्रिकाओं ने लघुकथा के लिए गम्भीरतापूर्वक काम शुरू किया, उनमें अतिरिक्त (संपादक : भगीरथ, रमेश जैन; अंक 4, मई 1972 से लघुकथाएँ), बम्बार्ड (26 जनवरी 1974 अंक; 22 लघुकथाएँ), अन्तर्यात्रा (संपादक : कृष्ण कमलेश; अंक 9 मई 1977 में लघुकथाएँ), ‘प्रगतिशील समाज’ (जून 1975, संपादक : अवधेश अमन), ‘साहित्य निर्झर’, ‘समग्र’, ‘लघुकथा चौमासिकी’, ‘शब्द’ (जनवरी 1975, संपादक : चन्दर चौधरी), मिनीयुग आदि पत्रिकाओं के लघुकथा विशेषांक आकर चर्चित हो चुके थे। 



शिक्षक  संसार  (मई  1973, लघुकथांक, संपादक : राधेश्याम अग्रवाल) हिन्दी मिलाप (जालंधर) ने 23 मार्च 1975 अंक लघुकथा  विशेषांक  के रूप  में  प्रकाशित किया जिसमें 22 लघुकथाओं को स्थान मिला। आपात्  काल में  प्रकाशित  सारिका जुलाई 1975 में 40 रचनाकारों की 53 लघुकथाओं को स्थान दिया गया था।  अगस्त 1978 में  लघुकथा  केन्द्रित नवधारा (संपादक : महेश सक्सेना) का प्रकाशन हुआ। 

यशपाल की लघुकथा संतोष का क्षणऔर सीखको सारिकाके 2 जनवरी, 1978 के अंक में पृष्ठ 27, एवं पृष्ठ 49 पर लघु-कहानी शीर्षक  के अन्तर्गत  प्रकाशित  किया  गया था  

ग्रहण (सं॰ श्रीराम मीणा) का लघुकथा विशेषांक जून 1979 में आया। आचार्य जगदीश चन्द्र मिश्र का लघुकथा संग्रह ‘ऐतिहासिक लघुकथाएँ’ 1971 में आया। शरद कुमार मिश्र ‘शरद’ का लघुकथा संग्रह ‘धूप और धुआँ’ 1957, ‘निर्माण के अंकुर’ 1975। ‘कहानीकार’ जन-फर 1968 अंक में राजेन्द्र यादव की ‘आर-पार’ छपी जिसके बारे में स्वयं लेखक की आत्म-स्वीकृति छपी थी‘इस कहानी के संबंध में सिर्फ इतना ही कहना चाहूँगा कि रूप में यह छोटी है फिर भी मुझे इससे बहुत संतोष है; शायद संग्रह का नाम भी इसी पर दूँ।’ और यही उन्होंने किया भी।

सारिका’ नवंबर 1971 पृष्ठ 59 पर ‘तीन लघु कथाएँ’ शीर्षक तले अब्दुल कादुर जुनेजो की ‘शिकारी’ व ‘दोजख का आदी’ तथा फकीर की ‘ये घरवालियाँ’ प्रकाशित हुईं।

लघुकथा की पहली रजिस्टर्ड पत्रिका लखनऊ से 1974 में प्रकाशित हुईलघुकथा चौमासिक। दुर्भाग्य से इसके दो ही अंक प्रकाश में आ पाये और पत्रिका बंद हो गयी। अप्रकट रूप में लघुकथा चौमासिक का सम्पादन बन्धु कुशावर्ती के हाथों में था। 1974 में ही हिन्दी लघुकथा का पहला संपादित संकलन ‘गुफाओं से मैदान की ओर’ नाम से रमेश जैन व भगीरथ के संपादन में रावतभाटा (कोटा, राजस्थान) से प्रकाशित हुआ।

सन् 1978 में महावीर प्रसाद जैन के संपादन में ‘समग्र’ का लघुकथा विशेषांक इस विधा के लिए एक और प्रस्थान बिंदु सिद्ध हुआ। जनवरी 1982 में शाश्वत सन्दर्भ का लघुकथा विशेषांक आया। सन् 1983 में सतीश राठी ने ‘क्षितिज’ संस्था का गठन किया। इन्दौर से ही विक्रम सोनी के संपादन में लघुकथा की केन्द्रीय पत्रिका ‘लघु आघात’ का प्रकाशन एक ऐतिहासिक घटना रही।

बलराम द्वारा संपादित विभिन्न लघुकथा कोशों ने विधा को स्पष्ट पहचान और पुष्टि प्रदान की। पहला लघुकथा सम्मेलन नवम्बर 1980 में प्रभाकर श्रोत्रिय जी की अध्यक्षता में  होशंगाबाद (मप्र) में हुआ था। तत्पश्चात् सन् 1988 में सतीशराज पुष्करणा ने पटना में प्रथम लघुकथा सम्मेलन का आयोजन किया। उसके बाद उन्होंने 'अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच' के बैनर तले समस्त लघुकथा सम्मेलन किये। सन् 2017 यानी पुष्करणा जी के स्वस्थ रहने तक उक्त मंच 29 लघुकथा सम्मेलन सम्पन्न करा चुका था जिसके आयोजन का दायित्व 25वें लघुकथा सम्मेलन के बाद डॉ॰ ध्रुव कुमार सँभाल रहे हैं। दिल्ली दूरदर्शन पर प्रथम बार सन् 1989 में तत्पश्चात् 1992 में लघुकथा पर वार्ताएँ प्रसारित की गयीं। आकाशवाणी की राष्ट्रीय एवं विदेश प्रसारण सेवा ने लघुकथा के पाठ व वार्ताओं को लगातार प्रसारित किया।

बीसवीं सदी जाते-जाते दो प्रमुख उपहार लघुकथा को देकर गयी थी। पहला, सुकेश साहनी द्वारा ‘लघुकथा डॉट कॉंम’ की नींव डालना जिससे सन् 2008 में रामेश्वर काम्बोज हिमांशु ने जुड़कर मजबूती और व्यापकता प्रदान की; तथा दूसरा, दिसम्बर 2000 में 2001 के आर्य स्मृति साहित्य सम्मान हेतु लघुकथा की पांडुलिपियाँ आमन्त्रित करना। इस प्रतियोगिता में चैतन्य त्रिवेदी के लघुकथा संग्रह ‘उल्लास’ को पुरस्कृत घोषित किया गया था। किताबघर, नई दिल्ली द्वारा आयोजित उक्त लघुकथा प्रतियोगिता के निर्णायक थेप्रबुद्ध कथाकार कमलेश्वर व राजेन्द्र यादव तथा विदुषी कथाकार चित्रा मुद्गल। कहा जा सकता है इक्कीसवीं सदी का उदय लघुकथा के लिए प्रिंट और नेट दोनों ही स्तर पर अत्यंत उल्लासपूर्ण रहा।  

सन् 2001 ई से 2021 ई तक

इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में लगभग 210 एकल लघुकथा संग्रह, 40 संपादित संकलन तथा 20 लघुकथा विशेषांकों का प्रकाशन हुआ। इस दशक में लघुकथा आलोचना ग्रंथों की संख्या लगभग 10 ही रही। पहले दशक के वर्ष 2006 में कथादेश पत्रिका के मंच से सुकेश साहनी द्वारा लघुकथा प्रतियोगिता का वार्षिक आयोजन आरम्भ किया गया तथा 2008 में कमल चोपड़ा ने लघुकथा वार्षिकी ‘संरचना’ का प्रकाशन प्रारम्भ किया। ये दोनों ही कार्य अब तक जारी हैं। दूसरे दशक में (2021 तक) एकल लघुकथा संग्रह लगभग 200, संपादित संकलन लगभग 120, आलोचना पुस्तकें लगभग 30 तथा विशेषांक भी यथेष्ट संख्या में प्रकाशित हो चुके हैं। मुकेश शर्मा द्वारा संपादित ‘लघुकथा के आयाम’ में  हरिशंकर परसाई, विष्णु प्रभाकर आदि अनेक वरिष्ठ साहित्यकारों के साथ पत्र-बातचीत को उनकी मूल हस्तलिपि में प्रकाशित कर पुस्तक को ऐतिहासिक स्वरूप प्रदान किया गया है।

इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक को लघुकथा का वर्षा-काल कहा जा सकता है या फिर वसंत-काल। इसे ‘बाढ़’ की संज्ञा में नहीं दूँगा। लघुकथा से हर दिशा पुष्पित-पल्लवित नजर आती है। इस दृश्य का प्रमुख कारण संचार सुविधाओं का आम आदमी की पहुँच तक चले आना है। इस समय में एंड्रॉयड फोन के विस्तार और उसके माध्यम से अभिव्यक्त होने की सुविधाओं ने चौके-चूल्हे में दबी-ढँकी, लज्जाशील और संकोची भारतीय मेधा को उभरने का अवसर दिया और बड़ी संख्या में महिलाएँ लघुकथा-लेखन से आ जुड़ीं। उनमें लगभग 20 नाम अवश्य ही ऐसे हैं, जिनमें भविष्य की उत्कृष्ट संभावना को देखा जा सकता है।

 प्रिंट मीडिया में लघुकथा को बढ़ावा देने वाले प्रमुख व्यक्ति रहे कथाकार-प्रकाशक मधुदीप। उन्होंने स्वयं द्वारा 1988 में संपादित-प्रकाशित संकलन ‘पड़ाव और पड़ताल’ का 2013 में पुनर्प्रकाशन कर उसकी रजत जयंती मनायी। उसके बाद एक के बाद एक, अपने जीवन के अन्तिम क्षण (11 जनवरी 2022) तक उन्होंने ‘पड़ाव और पड़ताल’ शृंखला के तो 33 खंड प्रकाशित किये ही, अन्य भी अनेक लघुकथा पुस्तकों का निर्माण कराया। उन्होंने रचना और आलोचना से जुड़े अनेक नवागतों को इस शृंखला में स्थान दिया।



दूसरे दशक में ही साहित्य अकादमी, नई दिल्ली तथा हिन्दी अकादमी, दिल्ली ने लघुकथा-पाठ के कार्यक्रम कराये। लक्ष्मीशंकर बाजपेयी की अगुआई में सम्पन्न साहित्य और कला के मेले ‘जश्न-ए-हिन्द’ में लघुकथा को मंच प्रदान किया गया। ‘आज तक’ चैनल के ‘साहित्य आज तक’ कार्यक्रम में सुकेश साहनी ने लघुकथा का प्रतिनिधित्व किया। अशोक जैन ने दशकों बाद पुन: लघुकथा लेखन व संपादन की ओर रुख किया और लघुकथा अर्द्धवार्षिकी ‘दृष्टि’ का प्रकाशन प्रारम्भ किया। सन् 2018 में पटियाला (पंजाब) से 300 रचनाकारों की 650 से अधिक लघुकथाओं, आलोचनात्मक लेखों और समीक्षाओं आदि से युक्त बड़े आकार के आर्ट पेपर पर छपे 340 पृष्ठीय लघुकथा-महाविशेषांक का ‘लघुकथा कलश’ नाम से प्रकाशन योगराज प्रभाकर ने अपने छोटे भाई रवि प्रभाकर के साथ मिलकर किया। दिसम्बर 2021 तक इस छमाही आयोजन के आठ अंक प्रकाशित हो चुके हैं। दुर्भाग्य से कोरोना की दूसरी लहर में रवि प्रभाकर जैसे प्रतिभावान् कथाकार-आलोचक-संपादक को (22 मई 2021) हमसे छीन लिया। उससे अगले ही दिन (23 मई 2021 को) हिन्दी लघुकथा में प्रथम पी-एच॰ डी॰ शोधोपाधि प्राप्त डॉ॰ शकुन्तला किरण तथा 28 जून 2021 को सतीशराज पुष्करणा जैसे कद्दावर लघुकथाकार से यह क्षेत्र वंचित हो गया। बावजूद इस सबके, युवा सोच और शक्ति से ओतप्रोत यह कारवां उत्तरोत्तर जारी है। देश ही नहीं विदेश में भी जहाँ-जहाँ हिन्दीभाषी कथाकार हैं, वहाँ लेखन, संपादन, आलोचना, अनुवाद, शोध, फिल्मांकन आदि विभिन्न क्षेत्रों में लघुकथा पर स्तरीय कार्य हो रहा है।

डॉ॰ उमेश महादोषी के संपादन में बरेली (उप्र) से प्रकाशित होने वाली त्रैमासिक पत्रिका ‘अविराम साहित्यिकी’ ने अपने सामान्य अंकों में लघुकथाओं को स्थान देने के अलावा सन् 2012, 2015 और 2018 में लघुकथा विशेषांक प्रकाशित किये। इन सबसे बढ़कर डॉ॰ उमेश महादोषी ने वर्ष 2021 को ‘लघुकथा स्वर्ण जयन्ती वर्ष’ के रूप में मनाया। इसके अन्तर्गत उन्होंने जनवरी 2021 से मार्च 2022 तक ‘अविराम साहित्यिकी’ के सभी अंक लघुकथा को समर्पित किये तथा एक लघुकथा प्रतियोगिता का भी आयोजन कर नवागत लघुकथाकारों को पुरस्कृत कर प्रोत्साहित किया।

‘हिन्दी लघुकथा’ को शोध हेतु स्वीकृति देने की शुरुआत सन् 1976 में राजस्थान विश्वविद्यालय ने की थी। उसके बाद तो देश के कितने ही विश्वविद्यालयों से कितने ही शोधार्थी लघुकथा विषय पर पी-एच॰डी॰ की शोधोपाधि प्राप्त कर इस विधा के शास्त्र को पुष्ट कर चुके हैं। वर्ष 2003 में जर्मन छात्रा इरा शर्मा वलेरिया ने हिन्दी लघुकथा साहित्य पर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में ‘द लघुकथा’ नाम से शोधोपाधि ग्रहण की थी। उनका शोध-कार्य 2003 में ही अंग्रेजी में इसी नाम से कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय तथा जर्मनी से प्रकाशित हो चुका है तथा भारत में भी उपलब्ध है। वर्तमान में भी देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में अनेक शोधार्थी पी-एच॰ डी॰ की उपाधि हेतु लघुकथा पर शोधरत हैं। वर्ष 2018-2020 में संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार ने इन पंक्तियों के लेखक (डॉ॰) बलराम अग्रवाल को ‘लघुकथा : इतिहास, स्वरूप और सम्भावना’ विषय पर सीनियर फैलोशिप प्रदान की थी जोकि वर्ष 2021 में विशेषज्ञों द्वारा अनुमोदित की जा चुकी है। सुप्रसिद्ध चित्रकार हरिपाल त्यागी ने भी सौ से ऊपर लघुकथाएँ लिखी थीं जो उनके जीवनकाल में पुस्तक रूप में न आ सकीं।



2010 में योगराज प्रभाकर ने पटियाला (पंजाब) से ‘ओपन बुक्स ऑनलाइन’ पोर्टल की शुरुआत की जिसमें 2014 से लघुकथा के पाठ को निरन्तरता प्राप्त है और जनवरी 2022 तक उसकी 80 गोष्ठियाँ संपन्न हो चुकी हैं। 27 सितम्बर 2017 को भोपाल (मप्र) में वरिष्ठ लेखिका मालती बसंत महावर और कांता राय के प्रयत्नों से ‘लघुकथा शोध केन्द्र’ की स्थापना की गयी।  16 मई 2018 को भोपाल से ही ‘लघुकथा टाइम्स’ का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ, पंजीकरण के उपरांत जिसका नाम ‘लघुकथा वृत्त’ हो गया। देश-विदेश में कार्यरत नयी पीढ़ी के अनेक कथाकार व आलोचक इस मुहिम से जुड़ चुके हैं।

सम्प्रति डॉ॰ कमल किशोर गोयनका, डॉ॰ शकुन्तला किरण, डॉ॰ अशोक भाटिया, डॉ॰ सत्यवीर मानव, डॉ॰ रामकुमार घोटड़, भगीरथ, सुकेश साहनी, डॉ॰ कमल चोपड़ा, रामेश्वर काम्बोज हिमांशु, प्रो॰ रूप देवगुण आदि की आलोचना पुस्तकों से तथा योगराज प्रभाकर, कांता राय, सतीश राठी, श्याम सुन्दर दीप्ति, श्याम सुन्दर अग्रवाल व जगदीश राय कुलरियां आदि के संगठनात्मक प्रयासों से लघुकथा साहित्य सम्पन्न होने की राह पर लगातार अग्रसर  है।  *****

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