रविवार, 1 जनवरी 2017

समकालीन लघुकथा : विविध आयाम-1 / बलराम अग्रवाल

सभी मित्रों को नववर्ष 2017 के आगमन पर हार्दिक मंगलकामनाएं। 'जनगाथा' पर आज से पढ़ें-- 
'हिन्दी लघुकथा का मनोविज्ञान' पुस्तक का दूसरा अध्याय--'समकालीन लघुकथा : विभिन्न आयाम' की पहली किस्त--                                                                                                                            पहली किस्त दिनांक 01-01-2017                                                                                                                                                                                    
आवरण : के॰ रवीन्द्र
मकालीन लघुकथा पर विचार करने के क्रम में अति आवश्यक है कि हम 'समकालीन’ शब्द पर विचार कर लें। साहित्य के संदर्भ में ‘समकालीन’ व्यापक अर्थबोध को वहन करने वाला शब्द है। यह साहित्यकार के अपने समय के सरोकारों और सोच से जुड़ाव को प्रकट करता है। ‘समकालीनता’ नवलेखन के संदर्भ में प्रयुक्त अत्यंत परिचित शब्द है। समकालीनता क्या है
? इस संदर्भ में ‘कल मुझे सुनना’ की भूमिका में धूमिल ने लिखा है— ‘रूप,   रंग और अर्थ के स्तर पर आजाद रहने तथा सामने बैठे आदमी की गिरफ्त में न आने की तड़प,   एक आवश्यक और समझदार इच्छा जो आदमी को आदमी से जोड़ती है। मगर आदमी को आदमी की जेब में या जूते में नहीं डालती। स्वतन्त्रता की तीव्र इच्छा और उसके लिए पहल के समर्थन में लिखा गया साहित्य ही समकालीन साहित्य है।’ ‘समकालीन’ संज्ञा साहित्य की प्रायः सभी विधाओं के साथ प्रयुक्त हो रही है। यथा,   ‘समकालीन कविता’,   ‘समकालीन उपन्यास’,   ‘समकालीन निबंध’,   ‘समकालीन कहानी’ आदि। कतिपय कोशकारों,   विद्वान आलोचकों,   व्याकरणाचार्यों,   भाषाविदों और स्वयं रचनाकारों द्वारा समय-समय पर प्रयुक्त ‘समकालीन’ शब्द के विभिन्न अर्थ निम्नवत् हैं
समकालीन और आधुनिक : शब्दकोशीय अर्थ
बृहत् हिन्दी कोश’ में ‘समकालीन’ को विशेषण बताते हुए इसका अर्थ ‘एक समय में रहने या होने वाला’ दिया हुआ है। रामचन्द्र वर्मा एवं बद्रीनाथ कपूर द्वारा संपादित ‘मानक हिन्दी कोश’ में इसका अर्थ यों स्पष्ट किया गया है— ‘जो उसी काल या समय में जीवित अर्थात् वर्तमान रहा हो,   जिसमें कुछ और विशिष्ट लोग भी रहे हों अर्थात् एक ही समय में रहने वाला। जो उत्पत्ति,   स्थिति आदि के विचार से एक ही समय में हुए हों’। नालन्दा आद्यतन कोश’ के अनुसार ‘समकालीन’ शब्द सम उपसर्ग में कालीन,   काल की अवधारणा जोड़ते हुए एक विशेषण लगाकर बनता है जिसका अर्थ है— ‘जो एक ही समय में हुआ हो।’ ‘शिक्षार्थी हिन्दी शब्दकोश’ में इसका अर्थ ‘एक ही समय का’ यानी सामयिक रूप में लिया जाता है। ‘महाराष्ट्र शब्दकोश’ में समकालीन को ‘एकाच कालचे’ अर्थात् एककालीन कहा गया है।  ‘आदर्श हिन्दी संस्कृत कोश’ में समकालीन का अर्थ— ‘एककालिक’,   ‘एककालीन’ तथा ‘समकालीन’ बताया गया है।  ‘संक्षिप्त हिन्दी शब्द सागर’ में इसका अर्थ है— ‘जो दो या कई एक ही समय में हों।’  ‘हिन्दी राष्ट्रभाषा कोश’ के अनुसार— ‘एक ही समय में होेने वाला’ समकालीन होता है। ‘मानक हिन्दी-अंग्रेजी शब्दकोश’ में भी काॅन्टेम्प्रॅरी को समकालीन का अंग्रेजी पर्याय ठहराया गया है। व्यावहारिक हिन्दी-अंग्रेजी शब्दकोश’ इसका एक अच्छा उदाहरण है। वहाँ ‘समकालीन’ शब्द के लिए काॅन्टेम्प्रॅरी,   काॅन्टेम्पोरेनियम आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है। फादर कामिल बुल्के ने ‘अंग्रेजी-हिन्दी कोश’ में अंग्रेजी शब्द ‘कोइवल’ (Coeval) के— ‘समवयस्क’,   ‘समसामयिक’ तथा ‘समकालीन’ अर्थों को उचित ठहराया है।
'संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश',   'संस्कृत-हिन्दी कोश',   'सामयिक प्रशासनिक कोश',   'अंग्रेजी-हिन्दी कोश',   'मानक अंग्रेजी-हिन्दी कोश',   तथा 'नालन्दा विशाल शब्द सागर' के मत भी उपर्युक्त ही हैं।
अंग्रेजी में ‘समकालीन’ के समानार्थी शब्द ‘कोइवल’ तथा ‘काॅन्टेम्प्रॅरी’ (Contemporary) माने जाते हैं। अंग्रेजी-अंग्रेजी शब्दकोश ‘द न्यू कोलिन्स काॅम्पेक्ट इंगलिश डिक्शनरी’ में जिनके अर्थ ‘आॅफ सेम एज आॅर जेनेरेशन’,   ‘एग्जिस्टिंग आॅर लास्टिंग एट द सेम टाइम’,   ‘आॅफ सेम टाइम’,   ‘प्रेजेन्ट डे’ तथा ‘वन एग्जिस्टिंग एट सेम टाइम एज अनदर’ दिए हुए हैं जिनका अर्थ ‘एक समय में रहने या होने वाला’ ही ठहरता है।
इसी प्रकार ‘ईडियोमेटिक अॅण्ड सिन्टेक्टिक इंग्लिश डिक्शनरी’ में ‘काॅन्टेम्प्रॅरी’ को विशेषण बताते हुए इसके अर्थ ‘मेड एट,   एग्ज़िस्टिंग एट आॅर बिलोंगिंग टु द सेम टाइम’ तथा संज्ञा-विशेषण बताते हुए इसका अर्थ ‘पर्सन बिलोंगिंग टु द सेम टाइम्स,   अ पर्सन आॅफ सेम एज अॅज़ अनदर’ तथा ‘कोइवल’ का अर्थ ‘लास्टिंग फाॅर द सेम पीरियड आॅफ टाइम’ भी बताया गया है।
समकालीन’ के इन्हीं अर्थों को 'लघु हिन्दी शब्द संसार',   'भार्गव आदर्श हिन्दी शब्द कोश',   'हिन्दी शब्द सागर' (नौवां भाग) तथा ‘भाषा शब्दकोश’ में भी दिया गया है।
आलोचकों और साहित्यकारों का मत
आलोचकों और साहित्यकारों ने ‘समकालीन’ तथा ‘समसामयिक’ शब्दों को अंग्रेजी भाषा के काॅन्टेम्प्रॅरी,   कोइवल आदि शब्दों के पर्याय रूप में माना है।
डॉ. सूर्यकान्त ‘समकालीन’,   ‘समसामयिक’ शब्दों के लिए ‘काॅन्टेम्प्रॅरी’ शब्द को उचित मानते हैं।
आर. सी. पाठक ने ‘समकालीन’ शब्द के प्रतिशब्द के रूप में ‘काॅन्टेम्प्रॅरी’, ‘काॅन्टेम्पोरेनियम’,   ‘कोइवल’,   ‘लिविंग’ को तथा ‘कोइवल’ व ‘काॅन्टेम्प्रॅरी’ के लिए ‘समकालीन’ को स्वीकारा है।
डॉ. बलदेव वंशी का कथन है— ‘आज साहित्य में समकालीनता या समसामयिकता का खास संदर्भ एवं अर्थ लिया जाता है,   जो प्रचलित अर्थों से सर्वथा भिन्न है।’ लेकिन डॉ. विश्वम्भर नाथ उपाध्याय (समकालीन सिद्धांत और साहित्य) का मत है कि ‘समकालीनता’ एक काल में एक साथ जीना नहीं है। अपने काल की समस्याओं और चुनौतियों में भी,   केन्द्रीय महत्त्व रखने वाली समस्याओं की समझ से समकालीनता उत्पन्न होती हैं।’
विभिन्न लेखों,   पुस्तकों,   शोधग्रन्थों में ‘समकालीनता का संदर्भ विविध रूपों में बारम्बार आता है। कहीं उसका अर्थ प्रवृत्तिमूलक है तो कहीं समय-बोधक।’
राममूर्ति त्रिपाठी के अनुसार— ‘समकालीन का अर्थ ग्रहण किया जा सकता है— ‘समय के साथ’। ‘समय’ का अर्थ केवल ‘काल’ नहीं,   ‘समय-संदर्भ’ हैं जो उस युग को इतिहास की दृष्टि से विशिष्ट बना देते हैं।’
डॉ. पुष्पपाल सिंह के मतानुसार—  ‘समकालीनता’ और ‘समसामयिकता अपने मूल अर्थ में अंग्रेजी के काॅन्टेपोरेनिटी (Contemporaneity) अथवा कोइवल शब्दों के समतावाची हैं,   जिनका अर्थ हैउसी समय या कालखंड में होने वाली घटना या प्रवृत्ति या एक की कालखंड में जी रहे व्यक्ति।’
गौतम सान्याल का कथन है कि— ‘समकालीनता कालजीवितता का प्रत्यय है,   मात्रा समय का अनुभव नहीं,   यह सम्पूर्ण विरासत की सम्यक् प्रतीति है। यह परम्परा और वर्तमान के समय द्वन्द्व का कलापरक परिणाम है। समकालीनतासमय में होना मात्रा नहीं है,   बल्कि समय को गढ़ने की व्याकुल प्रचेष्टाएँ भी हैं,   यह अतीत की उचित आलोचना,   वर्तमान की सूचना और भविष्य के प्रति निर्देश है। यह सम्भावित समाज को उचित समाज में ढालने की यथार्थ-समाज की कलापरक चिन्ताएँ हैं। समकालीनतावर्तमान की आँच में तपता चिरंतन,   रचनाकार का आधुनिक चेहरा है। यह गहन और निरन्तर आत्ममन्थन भी है। समकालीनतासमय,   स्वयं और समाज के प्रति एक रचनाकार की प्रश्नरूप प्रतिबद्धता है।’ डॉ. शेखर शर्मा का मन्तव्य है कि ‘आधुनिकता’,   ‘माॅडर्निटी’ शब्द (और वह भी एक विशिष्ट अर्थ में) में अन्तर्निहित है।
समकालीन और समकालीनता के समान ही आधुनिक या आधुनिकता को परिभाषित करना जटिल कार्य है,   फिर भी ‘आधुनिक’ शब्द के अर्थ और उसकी परिव्याप्ति तथा ‘आधुनिकता’ की मानसिकता को विभिन्न विद्वानों के अभिमत के गहन और सूक्ष्म अध्ययन के उपरांत विश्लेषित किया गया है। इसके साथ ही ‘आधुनिकीकरण’ शब्द को भी समझने की चेष्टा की गई है। ‘आधुनिकता’ का प्रयोग साहित्य के संदर्भ में ‘समकालीनता’ से बहुत समय पूर्व हो चुका था। भारतीय इतिहास में आधुनिक-युग का आरंभ एक प्रकार से 18वीं शती के उत्तरार्द्ध से माना जाता है। यद्यपि कतिपय विद्वानों की मान्यता है कि सन् 1947 ई. के बाद से ही ‘आधुनिक भारत’ जैसी मानसिकता प्रस्फुटित हो गई थी।
राजेन्द्र यादव की मान्यता है कि ‘साहित्य-चिंतन के क्षेत्रा में ‘आधुनिक’ और ‘आधुनिकता’ शब्दों का प्रयोग विभिन्न अर्थों में होता रहता है। इस कारण ‘आधुनिकता’ का अर्थ ग्रहण करने में अनेक भ्रान्तियाँ भी होती रही हैं। ‘आधुनिक’ शब्द साहित्य-इतिहास की दृष्टि से काल-विशेष का द्योतक है,   जिसे मध्य-युग के विच्छेद के रूप में माना जा सकता है।’ परन्तु यह ‘आधुनिक’ के सीमित अर्थ-ग्रहण को ही दर्शाता है। वस्तुतः यह एक व्यापक शब्द है। शम्भुनाथ विचार व्यक्त करते हैं कि ‘आधुनिकता को हम ऐसी विचार-दृृष्टि और बोध प्रक्रिया कह सकते हैं,   जो अपने समाज का युगानुरूप संस्कार करती हुई पुरातन पड़ गये समय-बाह्य मूल्यों को नकार कर युग-सम्मत जीवन परंपरा का अंग बन जाती है। आगामी युग की आधुनिकतापूर्ण दृष्टि पुनः उस परम्परा का संस्कार कर नये जीवन-मूल्य स्थापित करती है। आधुनिकता एक सतत प्रक्रिया है जो हर युग में किसी न किसी रूप में विद्यमान रहती है।’
डॉ. नित्यानन्द तिवारी का कथन है कि—‘आधुनिक युग के पहले यदि ‘आधुनिक’ शब्द का प्रयोग होता था तो बहुत कुछ समकालीन के अर्थ में ही होता था। हर युग में समकालीन परिस्थितियाँ कुछ युग-मूल्यों को जन्म देती रही हैं और ये युग-मूल्य विभिन्न धाराओं या मतों के निर्माण में प्रेरणा का कार्य करते रहे हैं। मूल्य स्वयं में विचारधारा नहीं होते इसीलिए एक ही मूल्य परस्पर विरोधी प्रतीत होने वाली विचारधाराओं का प्रेरणा-स्रोत हो सकता है,   होता रहा है।’  आगे,   ‘समकालीनता अपने आप में न तो कोई मूल्य होती है और न विचारधारा या व्यवस्था। वह सिर्फ परिस्थिति है जिसके भीतर व्यक्ति अपने आसपास से सम्बन्ध स्थापित करता हुआ व्यक्तित्व का विकास करता है। कहें तो कह सकते हैं कि वह एक व्यवस्था की ओर बढ़ता है। जबकि समकालीनता के भीतर से उपजे मूल्य को महत्त्व देकर वह जिस ‘तरह’ से व्यवस्था की ओर बढ़ता है,   वह ‘तरह’ आधुनिकता कहा जा सकता है। किसी अनुशासन और मूल्य-भावना के अभाव में आधुनिकता का स्वरूप उभर ही नहीं सकता है।’
दूधनाथ सिंह कहते हैं— ‘समकालीनता का अर्थ है,   परिवर्तनों और परिस्थितियों को सही कोण से देखने का आग्रह।’ प्रख्यात कथाकार मैक्सिम गोर्की समकालीनता को सीधे रचनाकार से जोड़कर देखते हैं— ‘साहित्यकार अपने देश और अपने वर्ग की अनुभूति,   उसका कान आँख हृदय और अपने युग की आवाज होता है।’
राममूर्ति त्रिपाठी कहते हैं— ‘समकालीन’ को प्रायः ‘व्यतीत’ का विपरीतार्थी माना जाता है और इस प्रकार हमारा सम्पूर्ण लेखन विभाजित हो जाता हैएक ‘समकालीन’ लेखन और दूसरा ‘व्यतीत’ लेखन।’ जबकि डॉ. अशोक भाटिया का कथन है कि ‘समकालीनता का बोध वर्तमान समय का बोध है। जिसमें हम जी रहे हैं। यह वर्तमान बोध आधुनिक बोध का अंग है। आधुनिकता का महत्व मूल्यगत संदर्भों में भी है,   अतः वह समकालीनता की अपेक्षा व्यापक परिधि में फैली हुई है।’

शेष आगामी अंक में…

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