रविवार, 13 मार्च 2022

अपने हिस्से में… गुन:ह ही गुन:ह / बलराम अग्रवाल

बेतरतीब पन्ने-11

इन पन्नों पर एक करामात शुरू से ही शामिल रही है। वो यह कि इनमें से कुछ किस्से, जो अपने नाम से मैंने बयां
किये, जरूरी नहीं कि मेरे ही थे और बहुत-से किस्से, जिन्हें मैंने दोस्तों के बताया, जरूरी नहीं कि उनके ही रहे हों। 
 
इस रहस्य पर से पर्दा मैं क्यों उठा रहा हूँ? मजबूरी है। 
 
हुआ यों कि कयामत के दिन मेरे जैसे सीधे-सादे एक बंदे का चिट्ठा जो खोलकर पढ़ा गया, कर्मों के हिसाब से उनके लिए ‘दोजख’ का आदेश हुआ। बंदा परेशान। यह क्या हुआ? पूरी जिन्दगी तो बच्चे पैदा करने और पालने-पोसने में बिता दी, पाँचों वक्त की नमाज भी अता की। भूखों को भोजन खिलाया, प्यासों को पानी की कमी नहीं होने दी, बावजूद इसके दोजख!!! 
 
जैसे हिन्दू धर्म के अनुयायियों ने कर्मों का लेखा-जोखा रखने के लिए चित्रगुप्त को नियुक्त किया हुआ है, वैसे ही मुस्लिम धर्म में करामन और कातिबी का नाम बताया जाता है। बंदे ने कर्मों का हिसाब-किताब रखने वाले उन दोनों फरिश्तों से मुलाकात की। कहा कि देखें, नोट करने में जरूर कुछ का कुछ लिख देने की गलती आपसे हो गयी है। बोले कि—
 
मुझे घर से औ’ दफ्तर से तो फुरसत ही न मिलती थी,
गुनह फिर कब किये आखिर करामन-कातिबी मैंने?
 
दोनों देवदूतों ने उनकी दरयाफ्त सुनी और पढ़कर सुनाने की बजाय उनके कर्मों का बहीखाता ही उनके सामने कर दिया। कहा—“खुद ही देख लें।”
 
बंदे ने देखा! उस बहीखाते में उसके नाम के आगे लिखा कुछ नहीं था; अलबत्ता कागज के स्क्रीन पर स्वयं उसे ही बोलते हुए दिखाया जा रहा था। करामन और कातिबी ने कहा—“दोजख तो उसी आधार पर है जो खुद आप ही ने बयान किया था; अपनी ओर से हमने कुछ नहीं लिखा।”
 
उस मौके पर उस बंदे ने जो दलील पेश की, वह यों थी—
 
सुनाया इस कदर पुरजोर किस्सा अपनी उल्फत का,
फसाना था किसी का, अपनी बातें जोड़ दीं मैंने!
 
तात्पर्य यह कि तीर तो किसी 'और' ने चलाये थे, उन तीरों पर बंदा ‘और’ का नाम हटाकर अपना नाम जोड़ता और जिन्दगीभर वाह-वाही कमाता रहा।
 
‘बेतरतीब पन्ने’ आगे भी उस बंदे के किस्सों की तरह ही सामने आने वाले हैं। जाहिर है, कि इन पन्नों के लेखक का नाम ‘दोजख’ वाली फाइल में प्रोन्नत होता रहेगा, ऑटोमेटिकॉली। और यकीन मानिए, अपन करामन-कातिबी के सामने शिकायती खत लेकर हाजिर होने वाले बिलकुल भी नहीं हैं।
 
अफसानानिगारी का अंजाम पता है, दोजख ही मिलेगा दूसरा कुछ नहीं।
 
अफसानानिगारी के अलावा भी कई काम हैं जिनकी बदौलत दोजख के दरवाजे अपन को खुले मिलने वाले हैं। पहला काम यह कि अपन ब्रह्म-मुहूर्त में बिस्तर छोड़ने की बजाय ब्रह्म-मुहूर्त में बिस्तर जकड़ने के अभ्यासी हैं। दूसरा काम यह कि कभी भी चोरी-चकारी से पीछे नहीं हटते। आँख बची, माल यारों का। तीसरा यह कि प्याज और लहसुन से परहेज नहीं रखते। मांस-मच्छी कभी नहीं खाया लेकिन एक ही तरह की कसमें इतनी बार खायी हैं कि उन कसमों को ही लाज आने लगी होगी। 
 
अब जरा पत्नी की ओर रुख करते हैं। जब से आई हैं, वह ब्रह्म-मुहूर्त में बिस्तर छोड़कर घर के काम-काज में जुट जाने की आदी हैं। चोरी-चकारी? राम का नाम लो। प्याज-लहसुन, मांस-मच्छी? सवाल ही पैदा नहीं होता। मैं लगातार उन्हें समझाता हूँ कि ये वे गुण हैं जो परलोक में पति से दूर रहने में सहायक सिद्ध होंगे। इसलिए हे मीरा रानी! मत बनो आलसी, मत करो चोरी-चकारी, मत खाओ मांस-मच्छी; लेकिन प्याज-लहसुन तो कभी-कभार चख लिया करो। परलोक में पति के साथ बने रहने का कुछ तो जुगाड़ बनाकर चलो।
 
10-3-22/2:00(चित्र साभार)

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